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________________ (४६० ) चरकसंहिता - भा० टी० । तजाः । यथाकरोतिवायुश्चप्रमेहांश्चतुरोवली ॥ ४७ ॥ साध्यासाध्यविशेषाश्चपूर्वरूपाण्युपद्रवाः । प्रमेहाणांनिदानेऽस्मिनक्रियासत्रञ्चभाषितम् ॥ ४८ ॥ इतिअग्निवेशकृतेतन्त्रेचरकप्रतिसंस्कृतेप्रमेहनिदानं नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥४ ॥ अब अध्यायका उपसंहार करते हैं । इस प्रमेह निदान नामक अध्यायमें हेतु और - व्याधिविशेषों को तथा प्रमेहके कारणोंको, दोष, धातुके संयोगको तथा उनके अनेक प्रकारके रूपोंको कथन किया है । और दश प्रकारके कफजनित प्रमेह, छः प्रकारके पित्तजनित प्रमेह और जिस प्रकार बलवान् वायु चार प्रकारके प्रमेहांको उत्पन्न करता है।एवम् प्रमेहों को साध्य, असाध्यता तथा उनके पूर्वरूप, उपद्रव एवम् चिकित्साका क्रम यह सब कथन किया है ॥ ४६ ॥ ४७ ॥ ४८ ॥ इात श्रीमहर्षिचरक० निदान • पं० रामप्रसादुद्वैद्य ० भाषाटीकायां प्रमेहनिदानं नामचतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥ पंचमोऽध्यायः । -P-C#GERO · अथातः कुष्ठनिदानंव्याख्यास्यामइतिहस्माहभंगवानात्रेयः । अब हम कुष्ठके निदानकी व्याख्या करते हैं । इस प्रकार भगवान् आत्रेयजी - कथन करने लगे । कुष्ठोत्पत्तिका कारण । सप्तद्रव्याणिकुष्ठान प्रकृतिर्विकृतिमापन्नानि भवन्ति । तद्यथात्रयोदोषावातपित्तश्लेष्माणः प्रकोपणविकृतादूष्याश्चशरीरधात वत्स्वङ्मांसशोणितलसीकाश्चतुर्द्धादोषोपघातविकता इतिएतत्सप्तानांसप्तधातुकमेवंगत माजननंकुष्ठानामतः प्रभवाण्यभिनिर्वर्त्यमानानि केवलं शरीरमुपतपन्ति । नचकिञ्चिदस्तिकुष्ठमे - कदोषप्रकोपनिमित्तम् ॥ १ ॥ विकारको प्राप्तहुए सातंद्रव्य कृष्ठोंके प्रकृति अर्थात् कारण होते हैं । वह सात - इस प्रकार हैं। वात, पित्त, कफ यह तीन दोष अपने कुपितकारी कारणोंसे बिगड़ते
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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