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________________ थास्वंयुक्त्याजीणस्नेहाद्वातंशमा साहितमुदकाम निदानस्थान-अ० १. (४३१), धूम्रपान, अंजन, दूधपान इन सबको जिस जगह जिस विधिसे जिसका प्रयोग करना उचित हो उस प्रकार प्रयोग करे ॥ ४० ॥ - ज्वरमें घृतपान । 'यथास्वंयुक्याजीर्णज्वरेषुसर्वेष्वेवसर्पिषःपानंप्रशस्यते । यथा स्वमौषधसिद्धस्यसपिहिस्नेहाद्वातंशमयतिसंस्कारात्कफंशैत्यापित्तमुष्माणंचतस्माजीर्णज्वरेषुतुसर्वेष्वेवसर्पिर्हितमुदकमिवाग्निप्लुष्टेषुद्रव्येष्विति ॥४१॥ सब प्रकारके जीर्णज्वरों में उनके लक्षणों के अनुसार युक्तिपूर्वक ज्वरनाशक द्रव्योंद्वारा सिद्ध किये हुए घृतोंका पान करना परमोत्तम कहाहै। यथा लक्षणयुक्त औषधियोंसे सिद्ध किया घृत अपने स्नेहके योगप्ते वायुको शान्त करताहै । कफनाशक द्रव्योंके संयोगसे कफको शान्त करताहै एवम् शीतल होनेसे पित्तको शान्त करता है। इसलिये संपूर्ण जीर्णज्वरों में घृतका पान करना इस प्रकार शान्तिकारक है जैसे आग्नि लगे पदार्थोपर जलका डालदेना शान्तिकारक होताहै ॥४१॥ तत्रश्लोकाः । — यथाप्रज्वलितंवेश्मपरिषिञ्चन्तिवारिणा । . नराःशान्तिमभिप्रेत्यतथाजीर्णज्वरेघृतम् ॥ ४२ ॥ यहांपर श्लोक हैं-कि जैसे, अग्निसे जलते हुए घरको मनुष्य जलसे सींचता है और वह जल शान्तिकारक होताहै उसी प्रकार जीर्णज्वरमें घृत भी शान्तिकारक होताहै ॥४२॥ . स्नेहाद्वातंशमयतिशैत्यात्पित्तंनियच्छति । घृतंतुल्यगुणदोषंसंस्कारात्तुजयेत्कफम् ॥ १३ ॥ __ घृत-स्नेहसे वायुको शान्त करताहै और शीततासे पित्तको शान्त करताहै । घृत-कफके तुल्यगुण होनसे औषधियोंके संस्कार द्वारा कफको जीत लेताहै।॥४३॥ घृतको उत्कृष्टत्व । नान्यःस्नेहस्तथाकश्चित्संस्कारमनुवर्तते। यथासर्पिरतःसर्पिःसर्वस्नेहोत्तरंपरम् ॥ ४४ ॥ और स्नेह अर्थात् तैल आदिक द्रव्यान्तरसे संस्कार किये हुए द्रव्योंके गुणोंको ग्रहण नहीं करते । जिस प्रकार संस्कार द्वारा घृत औषधियोंके गुणको ग्रहण कर. लेता है। इसलिये सब प्रकारके स्नेहोंमें घृत परमोत्तम माना जाताहै ॥ ४४ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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