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________________ (३९६) चरकसंहिता-भा० टी० इमारा किसीसे शास्त्रार्थ कराओ जिस प्रकार मेहनतसे.हमने वैद्यकशास्त्रको पढा, और कौन परिश्रम करसकताहै यदि दैवयोगसे इनको कोई बुद्धिमान् शास्त्री बातचीत करनेवाला मिलजाय तो उससे बात करतेहुए भी घबडाते हैं । यदि कोई इनसे शास्त्रार्थ करनेकी इच्छा करे तो मृत्युके समान डरते हैं । न तो कहीं इनके गुरुका पता होताहै न इनके शिष्य आदिक कहीं होते हैं न कोई इनका स्वाध्यायी दिखाई पडताहै न किसी ऐसे वैद्यका पता लगताहै कि जिससे इन्होंने कभी शास्त्रकी बातचीत की हो ॥ १०॥ भिषक्छद्मप्रविश्यैवव्याधितांस्तयन्तिये । वसंतमिवसंश्रि. त्यवनेशाकुन्तिकोद्विजान् । श्रुतदृष्टक्रियाकालमात्रास्थानबहिष्कृताः । वजनीयाहितेनृत्योश्चरन्त्यनुचराभुवि ॥११॥ जैसे शिकारी पक्षियोंको जालमें फंसानेके लिये वनमें छिपे हुए रहते हैं उसी. प्रकार यह दुष्ट भी वैद्योंका स्वरूप बनाये हुए रोगियोंको अपन जालमें फंसानी कोशिशमें रहते हैं। शास्त्र,अनुभव, क्रिया,काल,मात्रा, स्थान, इन सबके ज्ञानसे रहित, मृत्युके अनुचररूप जो वैद्यका वेश धारण किये फिरते हैं उनको वैद्यकीय क्रियामें दृष्टिमात्रसे ही त्याग देना चाहिये ॥ ११ ॥ वृत्तिहतोर्मिषड्मानपूर्णान्सूर्खविशारदान् । वर्जयेदातरोविद्वान् सास्तेपीतमारुताः॥ १२॥ जो मनुष्य सामान्य आजीवन के निमित्त वैद्यवेश धारण किये हुए हैं ऐसे धूर्तीके गुरुओंको बुद्धिमान् रोगी दूरसे ही त्याग देवे क्योंकि यह दुष्ट पवन पिये हुए सौके समान जानने चाहिये ॥ १२ ॥ येतुशास्त्रविदोदक्षा शुचयःकर्मकोविदाः। जितहस्ताजितात्मानस्तेभ्यानित्यकर्तनमः ॥ १३॥ जो वैद्य शास्त्रके जाननेवाले हैं तथा आयुर्वेदके सब विषयों में चतुर हैं, शुद्धचित्त हैं, वैद्यकर्ममें विशारद हैं, जिन्होंने हस्तक्रियाको भले प्रकार सीखाहै उन जितात्मा वैद्योंको नित्यप्रति नमस्कार है ।। १३ ।। तत्र श्लोकः। .. दशप्राणायतनिकेश्लोकेस्थानार्थसंग्रहः। । . द्विविधाभिषजश्चोक्ताःप्राणस्यायतनानिच ॥ १४॥ इति दर्शप्राणायतनीयोनामोनत्रिंशोऽध्यायःसमाप्तः। कः । ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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