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________________ (३९०) चरकसंहिता - भा०टी० । भातुओं में होनेवाले विविध प्रकारके रोग समूह, उनके शान्तिके उपाय, दोषोंका कोष्ठाश्रित और शाखाश्रित होना, बुद्धिमान् तथा अज्ञानीका कृत्य, स्वस्थ और आरके लिये हितकारक उपदेश, यह सब इसे विविध अशितपीतीय अध्यायमें वर्णन किया गया है ॥ ४९ ॥ ६० ॥ ५१ ॥ ५२ ॥ r इति श्रीमहर्षिचरक ० पं० रामप्रसादवैद्य० भापाटीकायां विविधाशितपीतीयो नामाष्टाविंशोऽध्यायः ॥ २८ ॥ एकोनत्रिंशोऽध्यायः । अथातोदशप्राणायतनीयमध्यायं व्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानात्रेयः । अब हम दशप्राणायतनीय अध्यायकी व्याख्या करते हैं ऐसे भगवान् आत्रेयजी कथन करने लगे । प्राणस्थान तथा प्राणाभिसर वैद्य । दशैवायतनान्याहुः प्राणायेषुप्रतिष्ठिताः । शंखोममंत्रकण्ठोरक्तशुक्रौजसी गुदम् ॥ १ ॥ तानींद्रियाणिविज्ञानंचेतना - हेतुमामयम् । जानीतेयःसविद्वान् वैप्राणाभिसरउच्यतेइति ॥२॥ जिनमें प्राण आश्रयभूत रहते हैं वह दश स्थान हैं अथवा यों कहिये कि शरीरमें प्राणोंके रहनेके दश स्थान हैं। जैसे दोनों कनपट्टी, मस्तक, हृदय, वस्ती, कोष्ठरक्त, शुक्र, ओज और गुदा, जिस वैद्यको यह दश माणायतन और इद्रियें इनका विज्ञान, चेतना, हेतु तथा समस्त रोग इन सबका यथोचित ज्ञान है वह ही प्राणामिसर अर्थात् प्राणोंका रक्षक वैद्य कहाजाताहै ॥ १ ॥ २ ॥ वैद्योंके भेद | द्विविधास्तुखलुभिषजोभवन्तिअग्निवेश । प्राणानामेकेऽभिसाराहन्तारोरोगाणां, रोगाणामकेऽभिसराहन्तारः प्राणाना मितिः ॥ ३ ॥ संसार में दो प्रकार के वैद्य होते हैं। हे अग्निवेश 1. एक वैद्य तो रोगों को नष्ट कर नेवाले और प्राणों की रक्षा करनेवाले होते हैं, दूसरे रोगों को बढ़ानेवाले और प्राणोंको इनन करनेवाले होते हैं ॥ ३ ॥ 1
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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