SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूत्रस्थान-अ० २८. (३८३:) सहानिएभ्यश्चैवापथ्याहारदोषशरीरविशेषेभ्योव्याधयोमृदवो दारुणाक्षिप्रसमुत्थाश्चिरकारिणश्चभवन्ति ॥ ११ ॥ स्वभावसेही अतिस्थूल और अतिकृश शरीरखाले जिनके शरीरमें रक्त तथा मांस आदि क्षीण होगयाहो, दुर्ब मनुष्य असात्म्य आहारके कारण अल्पभोजन करनेवाले तथा कमजोर मनुष्य व्याधियोंके सहन करनेमें असमर्थ होतेहैं । इनसे विपरीत व्याधिसहनकर्ता होतेहैं इन अपथ्य, आहार, दोष,शरीर विशेषके प्रभावसे व्याधिये भी मृदु, दारुण, शीघ्रकारी और चिरकारी भी होती हैं ॥ १० ॥११॥ अतएवचवातपित्तश्लेष्माणःस्थानविशेषेणप्रकुपिताव्याधिविशेषानभिनिवर्तयन्तिअग्निवेशातत्ररसादिषुस्थानेषुप्रकुपितानां दोषाणांयस्मिनस्थानेयेयेव्याधयःसम्भवन्तितांस्तान्यथावदनुव्याख्यास्यामः ॥१२॥ इसलिये हे अग्निवेश ! वात, पित्त, कफ-स्थानविशेषमें कुपित होकर रोगविशेषको करतेहैं सो उन रसादि स्थानों में कुपित हुए दोष जिस जिस स्थानमें जिस जिस प्रकार जिन जिन रोगोंको उत्पन्न करते हैं उन उन सवको यथाक्रम वर्णन करतेहैं ॥ १२॥ रसदोषसे उत्पन्न रोग। अश्रद्धाचारुचिश्चास्यवरस्यमरसज्ञता । हृल्लासोगौरवंतन्द्रा साङ्गमदोंज्वरस्तमः॥ १३॥ पाण्दुत्वंस्रोतसांरोधःक्लैब्यसादः । ... कृशाङ्गता । नाशोऽग्नेरयथाकालंवलयःपलितानिच । रसप्र दोषजारोगावक्ष्यन्तेरक्तदोषजाः॥ १४ ॥ दोषों करके रसके दूषित होनेसे भोजनमें अश्रद्धा, अरुचि, मुखकी विरसता, रसका अज्ञान, हलास, गुरुता, तन्द्रा, अंगमर्द, ज्वर, आंखोंके आगे अन्धकार, पांडुपन, स्रोतोंका अवरोध, क्लीवता, अंगोंका अवसाद, कृशता, मंदाग्नि, बिनाही समयके बालोंका सफेद होजाना, शरीरमें,सरवट पडना.यह रोग होते हैं। अब आगे रक्त दूषित होनेसे जो रोग उत्पन्न होतेहैं उनको कहतेहैं ॥१३॥१४॥ रक्तदोषजराग। . कुष्ठवीसर्पपिडकारक्तपिचमसृग्दरः। गुदमेदास्थपाकश्चप्लीहायुलमोऽथविद्रधी ॥ १५॥ नीलिक कामलाव्यङ्गपिप्लवस्तिल- .
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy