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________________ (३६५) सूत्रस्थान - अ० २७. द्रव्यसंयोगसंस्कारं द्रव्यमामं पृथक्तथा । भक्ष्याणामादिशेहुद्धायथास्वं गुरुलाघवम् ॥ २६९ ॥ बुद्धिमान वैद्यको उचित है कि संपूर्ण भक्षण करनेके पदार्थों को द्रव्य, संयोग, संस्कार, मान विशेषसे यथोचित रीतिपर जानकर उनके अनुसार गुरु, लघु आदि कथन करे || २६९ ॥ रसालाक गुण | रसालाबृंहणीवृष्यास्निग्धावल्यारुचिप्रदा । स्नेहनं तर्पणं हृद्यं वातघ्नं सगुडदधि ॥ २७० ॥ शिखरन - वर्यिवर्द्धक, पुष्टिकारक, स्निग्ध, बलवर्द्धक एवम् रुचिकारक होता है. युक्त दही - तृप्तिकारक, स्नेहन और वातनाशक होता है || २७० ॥ पानकके गुण | द्राक्षाखर्जूर कोलानां गुरुविष्टम्भिपानकम् । परूषकाणां क्षौद्रस्ययच्चेक्षुविकृतिप्रति ॥ २७९ ॥ तेषांकट्वम्लसंयोगाः पानकानां पृथक्पृथक् । द्रव्यमानञ्चविज्ञायगुणकर्माणिचादिशेत् ॥ २७२ ॥ मुनक्का, खजूर, उन्नाव इनसे बनाया हुआ पानक भारी और विष्टम्भी होती है फालसेका रस और शहदसे बनाया हुआ पानक तथा खांड विशेषसे बनाया हुआ पानक उनके चरपरे, खट्टे आदि गुणोंसे तथा संयोग और द्रव्य मानको जानकर गुण कमको कथन करे । इसी प्रकार प्रायः सब फलोंके पानक (शरबत) जानने: चाहिये ॥ २७९ ॥ २७२ ॥ रागषांडव के गुण | कट्वम्लस्वादुलवणालघवोरागषांडवाः । सुखप्रियाश्च हृद्याश्चदीपनाभक्तरोचनाः ॥ २७३ ॥ रागखांडव - चरपरे, अम्ल, मधुर, नमकीन, हलके, मुखप्रिय, हृद्य, दीपन और भोजनमें रुचि करनेवाले होतेहैं ॥ २७३ ॥ आम और आंवलेका अवलेह । आम्रामलकलेहाश्चबृंहणाबलवर्द्धनाः । रोचनास्तर्पणाश्चोक्ताःस्नेहमाधुर्य्यगौरवात् ॥ २७४ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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