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________________ सूत्रस्थान-अ० २७ (३६३.) शालीचावलोंके सत्तू-मधुर, हलके, शीतल, ग्राही, रक्तापित्तनाशक, तृषानाशकएवम् वमन तथा ज्वरको शान्त करते हैं । २५७ ॥ जौकी रोटियोंका गुण । हन्यायाधीन्यवापूपोयावकोवाटयएवच । उदावर्त्तप्रतिश्यायकासमेहगलग्रहान् ॥ २५८॥ यवके पूडे और वाटिय- उदावर्त, प्रतिश्याय, खांसी, प्रमेह और गलग्रहको नष्ट करतेहैं ॥ २५८॥ जौकी धान के गुण । धानासंज्ञारतुयेभक्ष्याःप्रायस्तेलेखनात्मकाः। शुष्कत्वात्तर्षणाश्चैवविष्टम्भित्वाचदुर्जराः ॥ २५९ ॥ धाना (भुनेहुए यव या गेहूं). प्रायः लेखन होते हैं और शुष्क होनेसे तृषाजनक होते हैं तथा विम्भष्टी होनेसे दुर्जर होते हैं ॥ २५९ ॥ विरूढधानाके गुण । विरूढधाना:शष्कुल्योमधुक्रोडाःसपिण्डिकाः। सूपाःपूपुलिकाद्याश्चगुरम:पैष्टिकाःपरम् ॥ २६०॥ पिष्ट धान्योंकी शष्ठुली, मीठी गुझियें, लड्डू, पूडे, पूडिये और कचौरिये ये. सब अत्यन्त भारी होते हैं ॥ २६० ॥ फलादिसंस्कृतके गुण। फलमांसवसाशाकपललक्षौद्रसंस्कृताः। भक्ष्यावृष्याश्चबल्याश्चगुरवोबृहणात्मकाः ॥ २६१ ॥ फल, मांस, चर्बी, शाक, पल्वल, शहद इन सबके संयोगसे सिद्धकिये भोजनके पदार्थ-वीर्यवर्द्धक, वलकारक, भारी और पुष्टिजनक होते हैं ॥२६१॥ बेशवारके गुण । वेशवारोगुरुःस्निग्धोबलोपचयवर्द्धनः । गुरवस्तर्पणावृष्याःक्षीरेक्षुरससूपकाः ॥ २६२ ।। बेसवार ( पिष्ठमांस)-भारी, स्निग्ध और बलवर्दक होताहै । दूध और खांडसें। वनाईहुई खीर-भारी, तृप्तिकारक एवम् वीर्यवर्द्धक होती है ॥ २६२ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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