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________________ सूत्रस्थान-अ० २७. तर्पणीग्राहिणीलध्वीहृद्याचापिविलेपिका ॥२४५॥मण्डस्तु दीपयत्यग्निवातञ्चाप्यनुलोमयेत् ॥ मृदूकरोतिस्रोतांसिस्वेद संजनयत्यपि ॥२४६॥ लंघितानांविरिक्तानांजीणेनेहेचतृष्यताम् ॥ दीपनत्वाल्लघुत्वाच्चमण्डःस्यात्प्राणधारणः ॥२४७॥ विलपी वृप्तिकर्ता, ग्राही, हलकी एवम् हृदयको प्रिय होती है । मांड-अग्निदीपक, वायुको अनुलोमनकर्ता, स्रोतोंको मृदु करनेवाला और स्वेदजनक होताहै। लंघन करनेवाले मनुष्योंको, विरिक्त मनुष्योंको और स्नेहजीर्ण होनेपर दीपन और हलका होनेसे मंड पिलाना प्राणधारक होता है ।। २४५ ॥ २४६ ॥ २४७ ।। लाजमण्डके गुण । शृतःपिप्पलिशुण्ठीभ्यांयुक्तोलाजाम्लदाडिमैः। तृष्णातीसा. रशमनोधातुसाम्यकरःशिवः ॥लाजमण्डोऽग्निजननो दाहमू छानिवारणः॥ २४८ ॥ मन्दाग्निविषमाग्नीनांवालस्थविरयोषितामादेयश्चसुकुमाराणांलाजमण्ड सुसंस्कृतः। क्षत्पिपासा सहःपथ्यःशुद्धानान्तुमलापहः ।। २४९ ।। धानोंकी खीलोंका बनायाहुआ मांड-पीपल,सोंठ और खट्टे अनारोंका रस युक्त कर पीनेसे तृष्णा और आतिसार शान्त करताहैः और धातुओंको साम्यावस्थाम लाताहै, शुभ है,अभिजनक,दाह और मूर्छाको निवारण करनेवाला है। यह अच्छे प्रकारवनायाहुभालाजामंड मंदाग्निवालोंको, विषमानवालोंको,वालकोंको,वृदोंको स्त्रियोंको, सुकुमार पुरुषोंको, क्षुधा, पिपासाके शान्तिके लिये देनाचाहिये । यह संशोधित मनुष्योंको पथ्य है एवम् मलका निकालनेवाला है ॥ २४८ ॥ २४९ ॥ भातके गुण । सुधौतःप्रसुतःस्विन्नःसन्तप्तश्चौदनोलघुः । भृष्टतण्डुलमिच्छन्तिगरश्लेष्मामयेष्वपि ॥ २५० ॥ अधौतःप्रसुतस्विन्नः शीतश्चाप्योदनोगुरुः॥२५१ ॥ चावलोंको भले प्रकार धोकर सिद्ध करे और उनकी पीछ वगैरह दूरफर उत्तम तैयार होजानेपर इनका गर्मगर्म भोजन करना हलका और उत्तम कहाहै ।विषदोष और कफके विकारमें चावलोंको भूनकर भात सिद्ध होनेपर देनाचाहिये । विना धोयेहए, विना पाछ निकाले सिद्धकिया भात एवं शीतलभात भक्षण कियाहुआ भारी तथा गुरुपाकी होताहै ॥ २५० ॥ २५१॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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