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________________ (३३२. चरकसंहिता-भाल्टी। गवयमांसका गुण । गवयंकेवलेवातेपीनसेविषमज्वरे। शुष्ककासश्रमात्यग्निमांसक्षयहितश्चयत् ॥ ८१॥ गयंका मांस-जिस जगह केवल वात ही प्रधान हो और कफ तथा पित्त न हो एवम् प्रतिश्याय एवम् विषमज्वरमें सूखी खांसी,भ्रम, भस्मकाग्नि और यक्ष्मा 'हितकारी होताहै ॥ ८१ ॥ ____ महिषमांसका गुण। स्निग्धोष्णमधुरवृष्यमाहिषगुरुतर्पणम् । दाढयवृहत्त्वमुत्साहस्वप्नाञ्चजनयत्यपि ॥ ८२॥ भैसेका मांस-चिकना, उष्ण, मधुर, वृष्य, बृहण, शरीरको दृढ करनेवाला एवम् बृहत्व, साहस, निद्रा इनको उत्पन्न करनेवाला होताहै ॥ ८२॥ अण्डोंके गुण । धार्तराष्ट्रचकोराणांदक्षाणांशिखिनामपि । चटकानाञ्चयानि स्युरण्डानिचहितानिच ॥ ८३ ॥ रेतःक्षीणेषुकासेषुहृद्रोगेषु क्षतेषु च । मधुराण्यवपाकीनिसद्योवलकराणिच ॥ ८४ ॥ हंस, चकोर, मुर्गा, मोर, चिडे इनके अंडे हृद्रोग और क्षतरोगमें हितकारी हैं तथा मधुर, अविपाकी, शीघ्र वलवर्द्धक होतेहैं ।। ८३ ॥ ८४ ॥ __ मांसकी उत्कृष्टता। शरीरबृंहणनान्यत्दाढ्यमांसाद्विशिष्यते । इतिवर्गस्तृतीयोऽयमांसानांपरिकीर्तितः ॥८५॥ इति मांसवर्गः। जितने प्रकारके पदार्थ शररिको पुष्ट करनेवाले हैं उनमें मांस प्रधान होताहै । इस प्रकार यह मांसवर्गनामक तीसरा वर्ग कथन किया गया ॥ ८५ ॥ अथ शाकवर्गः । पाठातुषाशठीशाकंवास्तुकंसुनिषण्णकम् । विद्यायाहित्रिदोषघ्नभिन्नवर्चस्तुवास्तुकम् ॥८६॥ . १-सूत्रस्थाने पच्चविंशेऽध्याय,षड्वंशतितमे सूत्रे अहिततमेषु गोमांसस्य गणना कृता अतः अहित) -तमः गव्यमासो विषमज्वरेप्यहिततम एव परं तथापि गव्यामिति पाठान्तरं दृष्टम् ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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