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________________ (३१८) चरकसंहिता-भा० टी । अब अध्यायका उपसंहार करते हैं:-कि इस आत्रेय भद्रकाप्यीय अध्यायमें रसोंके विषयमें महर्षियोंके मत द्रव्योंके गुण, कर्म, द्रव्यसंख्या, रसका आश्रय, रसोंका कारण, रससंख्या, रस तथा अनुरसके लक्षण, पर,अपरादि-विशेष गुणोंका वर्णन, रसोंका पंचभूतात्मक होना और उनके ६ भेद तथा उनका कारण, भूतगुणविशिष्ट रसोंसे ऊCशोधन, और अनुलोमन ६ रसोंके यथोचित विभाग, द्रव्योंके गुण कर्मके सम्बन्धमें उद्देश और अपवाद, गौरव आदि गुणें में रसोंकी प्रधानता, मध्यता एवम् निकृष्टता, विपाक और प्रभावके लक्षण, वीर्य, संख्या आस्वादन द्वारा ६ रसोंके पृथक्पृथक् लक्षण, जो द्रव्य जिससे मिलाये जानेपर विरुद्ध होताहै और जो द्रव्य विरुद्ध होनेपर जिस जिस प्रकार विकार करताहै एवम् विरुद्ध भोज. नसे उत्पन्न हुए रोगोंकी चिकित्सा यह सब भगवान् पुनर्वसुजीने वर्णन कियाहै ॥ १४९ ॥ १५० ॥ १५१॥ १५२ ॥ १५३ ॥ १५४ ॥ १५५ ॥ इति श्रीमहर्षिचरक० पं०रामप्रसादवैद्य भाषाटीकायामात्रयभद्रकाप्यीयो नाम ___षड्विंशोऽध्यायः ॥ २६ ॥ सप्तविंशोऽध्यायः। -RSSISNOR- . अथातोऽन्नपानविधिमध्यायव्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानात्रेयः। अब हम अन्नपानविधि नामके अध्यायकी व्याख्या करतेहैं ऐसा आत्रेय भगचान् कहने लगे। अन्नपानकी उत्कृष्टता । . . इष्टवर्णगन्धरसस्पर्शविधिविहितमन्नानंप्राणिनांप्राणसंज्ञकानांशाणमाचक्षतेकुशलाः। प्रत्यक्षफलदर्शनात्तदिन्धनान्तराग्नेःस्थितिस्तदेवसत्त्वमूर्जयति । तच्छरीरधातुव्यूहबलवगेन्द्रियप्रसादकरंयथोक्तमुपसेव्यमानविपरीतमहितायसम्पद्यते ॥१॥ सुन्दर गंधवर्णवाले तथा सुसंपन्न रसवाले और पवित्र स्पर्शयुक्त एवम् यथाथरीति पर बनायेहुए अन्नपान प्राणियोंके प्राण मानेजाते, बुद्धिमानांका ऐसा कथन है। यथार्थ देखनेमें भी ऐसा ही आताहै कि उत्तम आहार ही अतराग्निके लिय .
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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