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________________ (३१४) चरकसंहिता-भा० टी०। .... यच्चापिदेशकालाग्निसात्म्यासात्म्यानिलादिभिः संस्कारतोवी यंतश्चकोष्ठावस्थाकमैरपि ॥ १२७ ॥ परिहारोपचाराभ्यां पाकासंयोगतोऽपिच । विरुद्धंतच्चनहितंहृत्संपद्विधिभिश्च यत् ॥ १२८॥ जो द्रव्य देश, काल और अग्नि, सात्म्य, असात्म्य, इनसे विरुद्ध हो और वायु आदिको विगाडकर प्रतिकूल हो तथा संस्कारसे अथवा वीर्यसे अथवा परिपाकसे, परिहार अथवा उपचारसे, परिपाकसे अथवा संयोगसे अथवा हार्दिक सम्पत्तिसे विरुद्ध हो वह सब पदार्थ हानिकारक और रोगोत्पादक होते हैं १२७ ॥ १२८ ।। विरुद्धंदेशतस्तावद्रूक्षतीक्ष्णादिधन्वनि। आनूपेस्निग्धशीतादिभेषजयन्निषेव्यते ॥ १२९ ॥ . अब देशविरुद्धोंका वर्णन करतेहैं । रूक्ष और तीक्ष्ण पदार्थ मिलाकर सेवन करना धन्व ( जलरहित ) देशमें विरुद्ध है । स्निग्ध और शीत. आदि पदार्थ मिलाकर खाना अनूपढ़ेशमें विरुद्ध है ॥ १२९ ॥ . .. . कालतोऽपिविरुद्धंयच्छीतरुक्षादिसेवनम्।. . . . . शीतेकालेतथोष्णेचकटुकोष्णादिसेवनम् ॥१३०॥ शीत और रूक्ष पदार्थोंको मिलाकर शीतकालमें सेवन करना कालविरुद्ध है तथा उष्ण, कटु पदार्थोंका उष्णकालमें सेवन करना कालविरुद्ध होताहै ॥१३०॥ विरुद्धमनलेतद्वन्नानुरूपंचतुर्विधे । मधुसर्पिःसमधृतमात्रया ताद्विरुध्यते ॥ १३१ ॥ कटुकोष्णादिसात्म्यस्यस्वादुशीतादिसेवनम् । यत्तत्सात्म्यविरुद्धन्तुविरुद्धंत्वनलादिभिः ॥ १३२ ॥ जा ४ प्रकारकी अग्निसे प्रतिकूल हो वह अग्निविरुद्ध होताहै । मधु और घृतकों. समान भागमें मिलाकर खाना मात्राविरुद्ध होताहै । उष्ण प्रकृति के मनुष्योंको चरपरा आदि उष्ण पदार्थ सात्म्य विरुद्ध है । एवम् शीतल और मधुर आदि सेवन असात्म्य विरुद्ध है। जो पदार्थ आग्नि आदिसे विरुद्ध होताहै वह सब ही सात्म्य. विरुद्ध जानना ॥ १३१ ॥ १३२॥ . यासमानगुणाभ्यासविरुद्धान्नौषधक्रिया। संस्कारतोविरुद्धन्तद्यद्भोज्यविषवद्वजेत् ॥ १३३॥....:
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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