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________________ चरकसंहिता - भा० टी० । · विरुद्ध आहारोंका वर्णन | तत्रयान्याहारमधिकृत्यभूयिष्ठमुपयुज्यन्तेतषामेकदेशेवैरोधिक मधिकृत्योपदेक्ष्यामः ॥ १०७ ॥ उनमें जो द्रव्य सदैव आहारमें भोजन के उपयोगमें लिये जाते हैं उनके एकांशमें विरोधकारक होने का वर्णन करते हैं ॥ १०७ ॥ नमत्स्यान्पयसा सहाभ्यवहरेदुभयं तन्मधुरं मधुरविपाकान्महाभिष्यन्दिशीतोष्णत्वाद्विरुद्धवीय्यविरुद्धवीर्य्यत्वाच्छोणितप्रदूषणाय महाभिष्यन्दित्वान्मार्गोपरोधायच ॥ १०८ ॥ मछलियों को दूध के संयोगसे सेवन करनेसे विरोध आजाता है, क्योंकि यह दोनों मधुर हैं और मधुरविपाकवाले होनेसे महा अभिष्यंदी हैं । परंतु शीत और उष्णवीर्य होनेसे विरोधीभावको प्राप्त हो रक्तको दूषित करते हैं और महाअभिष्यंदी होनेसे मार्गों को रोक देते हैं । इसीलिये रस में आवरुद्ध होते हुए भी वीर्य गुण विरुद्ध होने से रक्तको दूषित कर कुष्ठ आदि रोगों को उत्पन्न करते हैं ॥ १०८ ॥ तदनन्तरमात्रेयवचनमनुनिशम्य भद्रकाप्योऽग्निवेशमुवाच ।। सर्वानेवमत्स्यान्पयसासहाभ्यवहरेत्, अन्यत्रैकस्माच्चिलिचिमात् । सपुनःशकली सर्वतो लोहित राजिः रोहितप्रकारः प्रायो भूमौचरतितञ्चेत्पयसासहाभ्यवहरेन्निःसंशयंशोणितजानांवि ( ३१०) बन्धजानांवाव्याधीनामन्यतममथवा मरणंप्राप्नुयादिति ॥ १०९ ॥ इसके उपरान्त आत्रेय भगवानके इस उपदेशको सुनकर भद्रकाप्य ऋषि अग्निवैशसे कहने लगे कि चिलचिमनामक मछलीके सिवाय और मछलियोंको दूधकें संयोगसे चाहे खाया भी जाय परंतु चिलचिम मछलीको कभी न खाना चाहिये । चिलचिम मछली के शरीर में कांटे और लालवर्णकी रेखा होती हैं तथा लोहित मछलीके आकार की होती है और कीचड पर फिरा करती है यदि उसको दूधके साथ सेवन कियाजाय तो निश्रय ही रक्तजन्य तथा विबंधजनित रोग उत्पन्न होकर खानेवाला मृत्युको प्राप्त होजाय ॥ १०९ ॥ ! नेतिभगवानात्रेयः । सर्वानेव मत्स्यान्नपयसाभ्यवहरेद्विशेषतस्तुचिलिचिमंसहिमहाभिष्यन्दितमत्वास्थूललक्षणतरानेता न्व्याधीनुपजनयत्यामविषमुदीरयति च ॥ ११० ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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