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________________ (२६८ ) चरकसंहिता - भा० टी० 1 । नवतक ४७ ॥ ४८ ॥ प्रिय लगे ऐसे व्यथवा हींग और मिर्चका चूर्ण ही होश आनेके लिये देना चाहिये रोगीको होश आये उसको हलका अन्न भोजन कराना चाहिये ॥ कोतृहुलजनक उपाय और होशके लानेवाली बातोंको एवम् जो मीठे वचन ओर गीत, वाजा यह उसको सुनाव । एवम् विचित्र शब्द और नये २ वस्तुयें दिखावे ॥ ४९ ॥ बुद्धिमान् वैद्यको उचित है कि होश लानेके लिये युक्तिपूर्वक मलको निकाले तथा वमन, धूम्रपान, अंजन, कुले, परिश्रम, रक्त मोक्षण, उद्धर्पण आदि कमों द्वारा चिकित्सा करे ॥ ५० ॥ प्रवृद्धसंज्ञमतिमाननुवद्धमुपाचरेत् । तस्यसंरक्षितव्यंहिमनःप्रलयहेतुतः ॥ ५१ ॥ होश आनेके अनन्तर भी विधिपूर्वक यत्न करते रहना चाहिये और जिस प्रकार उसका मन खराव न हो तथा अन्य रोग अपना अधिकार न करनेपावें वैसा यत्न करता रहे ॥ ५१ ॥ स्नेहस्वेदोपपन्नानांयथादोपंयथावलम् । पञ्चकर्माणि कुर्वीतमूर्च्छायेषुमदषुच ॥ ५२ ॥ मृच्छी और मदरोगं मनुष्यका दोष और वल विचारकर फिर स्नेहन और ' स्वेदन करक विधिपूर्वक वमन विरेचनादि पंचकर्म द्वारा दोष हरना चाहिये ॥ ५२ ॥ अष्टाविंशत्योपधस्याथवातिक्तस्य सर्पिषः । प्रयोगः शस्यतेतद्वन्महतःपट्पलस्यवा ॥ ५३ ॥ त्रिफलायाः प्रयोगोवासघृतक्षोत्रशर्करः । शिलाजतुप्रयोगोवाप्रयोगः पयसेोऽपिवा ॥ ५४ ॥ पिप्पलीनां प्रयोगोवाप्रयोगश्चित्रकस्यवा । रसायनानां कौम्भस्वसर्पिपोवाप्रशस्यते ॥ ५५ ॥ सूच्छ और मदात्ययकी निवृत्तिके लिये अहाईस औषधियोंसे सिद्ध किया हुआ कल्याणवृत, तिक्तकवृत, महापटपलवृत, अथवा त्रिफलाधृत वा वांसेका घृत या घी और शहद तथा खांडके साथ त्रिफलेका प्रयोग अथवा शीलाजीत, दूध, पीपलका प्रयोग अथवा चित्रकका प्रयोग तथा रसायन प्रयोग और पुराना वृत इन सबका प्रयोग करना चाहिये ॥ ५३ ॥ ५४ ॥ ५५ ॥ रक्तावसेकाच्छात्राणां सतां सत्त्ववतामपि । सेवनान्मदमूच्र्छायाः प्रशाम्यन्तिशरीरिणाम्, इति ॥५६॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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