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________________ सूत्रस्थान अ० २४. वातादिदोषोंसे दूषित रक्तके लक्षण । बलदोषप्रमाणाद्वाविशुद्धयारुधिरस्यवा'। रुधिरंस्त्रावयजन्तोराशयंप्रसमीक्ष्यवा ॥ १७ ॥ अरुणाभंभवेद्वातात्पिच्छिलफनिलंतनु । पित्तात्पीतासितंरक्सौष्ण्यात्यायातिवैचिरात् ।। ॥ १८॥ ईषत्पाण्डुकफाददुष्टंपिच्छिलंतन्तुमद्धनम् । द्विदोषलिङ्गसंसर्गात्रिलिङ्गंसान्निपातिकम् ॥ १९ ॥ वायुसे दूषितहुआ रक्त-लाल,झागदार, पिच्छिल और पतला होताहै ।पित्तसे दूषित हुआ रक्त-पीला, काला, लाल, गर्म और देरमें जमनेवाला होताहै ॥ १७॥ इसी प्रकार कफसे दूषितहुआ रक्त-कुछ २पांडुवर्णका, पिच्छिल, तारयुक्त,गाढा होताहै । दो दोषोंके लक्षणोंवाला दो दोषोंसे दूषित जानना एवम् त्रिदोषके लक्षण मिलनेसे तीनों दोषोंसे दूषित समझना चाहिये ॥ १८ ॥ १९ ॥ शुद्धरक्तके लक्षण । तपनीयेन्द्रगोपाभपद्मालतकसान्निभम् । गुञ्जाफलसवर्णञ्च विशुद्धंविदिशोणितम् ॥२०॥ जो रक्त सुवर्णके समान तथा वीरबहूटीके समान लाल वर्णका हो एवम् पद्मराग माणके समान प्रकाशवाला हो अथवा रक्तक (चिरमटी, घुघची) के वर्णसमान लाल रंगका होताहै वह शुद्ध रक्त जानना ॥२०॥ रक्तमोक्षणानन्तर कर्तव्य । नात्युष्णशीतलघुदीपनीयंरक्तेऽपनीतेहितमन्नपानम् । तदाशरीरंह्यनवस्थितासमनिर्विशेषेणचरक्षितव्यम् ॥ २१॥ रक्त निकलवानेके अनन्तर जो अधिक गर्म तथा आधिक शीतल न हो ऐसा. हलका और अग्निको उद्दीपन करनेवाला अन्नपान सेवन करना चाहिये क्योंकि. रक्तकी ताकतसे ही अन्नका परिपाक होताहै सो रुधिर निकल जाने पर शरीरमें रक्तकी स्थिरता नहीं रहती इसलिये ऐसे समय पाचन करनेवाली आगिकी विधिपूर्व र्वक रक्षा करनी चाहिये ॥२१॥ प्रसन्नवणेन्द्रियामिन्द्रियार्थानिच्छन्तमव्याहतपक्तृवेगम् । सुखान्वितंमुष्टिबलोपपन्नंविशुद्धरक्तंपुरुषवदान्त ॥ २२ ॥ . मनुष्यके शरीरमें रक्तके शुद्ध होजानेसे वर्ण और इन्द्रियोंकी प्रसन्नता होतीहै तथा भोगकी इच्छा, पाचनशक्ति, सुख, पुष्टि और बलकी वृद्धि होतीहै ॥ २२॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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