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________________ भूमिका। निकालना और क्षारकर्म आदि यह सव आयुर्वेदके चिकित्साका अनुकरण करके ही याज उन्नतशील शुभराजमें डाक्टरी विद्याकी उन्नति हो रही है।इस इतनी उन्नत अवस्या भी बहुतसी शल्यचिकित्सा इण्डियन सर्जरी कहीजाती है । आंख बनाना भारतके सामान्य वैद्योंका अनुकरण है । आयुर्वेदके शल्यशालाक्य नाननेवालोंने जो २ कार्य किये हैं उनको यभी उन्नतशील चिकित्सकोंने स्वप्नमें भी नहीं देखा होगा। जैसे अश्विनीकुमारोंका दक्षका कटाहुआ शिर लगादेना, ब्रह्माका मस्तक जोडना,भोजका मस्तक चीरकर कपालके भीतरसे जीवोंकानिकालना आदि अनेक प्रकारफी क्रियायें फैसी विचित्र थीं । परन्तु समय भगवान्के हेरफेरसे माज वह सब कहानी मात्र रहगई ।जिसको अनुकरण मानतेहैं वह डाक्टरी विद्या अब शल्यकियामें इतनी उन्नत होतीजाती है विचारे आयुर्वेदाभिमानी उनकी वासतक नहीं समझ सकते । दा ! समय भगवान् क्या नहीं कर सकते ? परिवर्तनशील जगत्में ऐसी कौनसी वस्तु है जिसको समय भगवान्ने अपने झपाटेमें न लिया हो?। आज जिसको राजा महाराजा ऋषि और देवता भी महान सत्कारसे देखते हों फल उसीकी ओर देखकर तुच्छ पाणी भी वही घृणासे नाक चढाने लगतेहैं । आज जिसका झण्डा माकाशमं फहराताहै कालचक्रसे कल वह मटियामेट होकर मानो कभी था ही नहीं ऐसा प्रतीत होनेलगताहै । काल भगवानकी विचित्र महिमा है। जिस मायुः वेदको ऋषिगण देवलोकसे लायेथे, जिस आयुर्वेदको ब्रह्मासे प्राप्त न होनेके रोष में भैरव जलकर मरनेलगेथे, जिस आयुर्वेदको ऋषियोंने हिमालयकी चोटियोंपर पहुँच अनेक प्रयासोंसे प्राप्तकर नि:स्वार्थभावसे जगतके हितके लिये प्रचार कियाथा आज उन्हीं अपियों की संतान झुठे विज्ञापनों द्वारा ठगीकर उस आयुर्वेदकों लाञ्छित करना मुख्य उन्नति माननेलगी। ___ यह कभी नहीं कहा जासकता कि,सब संसार ही एकसा होताहै,अब भी बहुतेरे योग्य पुरूप परोपकारी सद्वैद्य और आयुर्वेदकी महिमाको जाननेवाले हैं जिनकी कृपासे औरंगजेबी जमानेके महाआवातसे वहुए ग्रंथ इस उन्नतशील श्रीभारत; सरकारके शुभ राज्यमें वडी आसानीसे छपछपकर प्राप्त होनेलगे हैं। पन्नु खेदका विषय है कि,और सब विद्याओंकी उन्नति होतेहुए भी आयुर्वेदकी रक्षा व जीणोद्वारका कोई प्रबंध अभी तक नहीं दीखता । उचित प्रबंध नहीं होनें बने कारणों में सबसे बडे चार कारण हैं, जिनके विना आयुर्वेद अपने चमत्कारकी गर्भना नहीं करसकता । वह चार कारण यह है-गाजाओंकी पोरसे पायदीय सर्वांग शिक्षाशा कोई प्रबन्ध न होनाराआयुर्वेदके जिस अंगके जोज्ञाता हैं उनका स्वच् हदयसे आयुर्वेदको प्रचार न करना २ । आयुर्वेदीय शिक्षाके
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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