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________________ सूत्रस्थान - अ० २३... संतर्पणज प्रमेहादिपर काय । तक्राभयाप्रयोगश्वत्रिफलायास्तथैवच । अरिष्टानांप्रयोगैश्चयान्तिमेहादयः शमम् ॥ १५ ॥ तक्र, हरड, त्रिफला और ऐसे ही अरिष्टोंके प्रयोग करनेसे: प्रमेह आदि रोग नाशको प्राप्त होतेहैं ॥ १५ ॥ ( २५७ ) त्र्यूषणंत्रिफलाक्षौद्रंक्रिमिघ्नंसाजमोदकम् । मन्थोऽयं सक्तवः सर्पिर्हितो लोहोद काप्लुतः ॥ १६ ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, त्रिफला, शहद, विडंग, अजमोद इन सबके चूर्ण में अगर का जल और सत्तू तथा घी इनका मंथ बनाकर पीवे तो संतर्पणसे उत्पन्न हुए सव रोग नष्ट होते हैं ॥ १६ ॥ संतर्पणजनितरोगोंकी चिकित्सा । व्योषविडङ्गशिग्रणित्रिफलाकटुरोहिणी । बृहत्यौद्वेहरिद्रेद्वेपा - ठासातिविषास्थिरा । हिङ्गुकेबुकमूलानियवानीधान्यचित्र - कम् ॥ १७ ॥ सौवर्चलमजाजीञ्चह वषांचेतिचूर्णयेत् । चूर्णते'लघतक्षौद्रभागाः स्युर्मानतः समाः ॥ १८ ॥ सक्तूनांषोडशगुणो भागः सन्तर्पणंपिवेत् । प्रयोगादस्यशाम्यन्तिरोगाः सन्तर्पणोत्थिताः ॥ १९ ॥ प्रमेहामूढ वातांश्चकुष्ठान्यशसिकामलाः । पुहिापाण्ड्वामयःशोफोमूत्रकृच्छमरोचकः ॥ २० ॥ हृद्रो-गोराजयक्ष्माचकासः श्वासोगलग्रहः । क्रिमयोग्रहणीदोषाः श्वैत्र्यंस्थौल्यमतीवच । नराणांदीध्यतेचाग्निःस्मृतिर्बुद्धिश्च वर्द्धते ॥ २१ ॥ } ! सोंठ, मिर्च, पीपल, सोहाञ्जनके बीज, हरड, बहेडा, आमला, कुटकी, दोनों कटेली, हलदी, दारुहलदी, पाठा, अतीश, शालपर्णी, हींग, केवूककी जड, अजवा यन, धनियां, चित्रक, संचरनमक, कालाजीरा, हाऊवेर इन सबका चूर्ण करके चूर्णके समान तैल, घी और शहद मिलावे तथा १६ गुना सत्तू मिलावे । इस औष धिके सेवन से संतर्पणसे उत्पन्न हुआ प्रमेह और ऊर्ध्ववात कुष्ठ, अर्श, कामला, प्लीहा, ' पांडु, सूजन, मूत्रकृच्छ्र, अरुाचे, हृद्रोग, यक्ष्मा, कास, श्वास, गलग्रह, कृमि, ग्रहणी, १७
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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