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________________ सूत्रस्थान - अ० २१. अध्यायका संक्षिप्तवर्णन | तत्रश्लोकाः | संग्रहः प्रकृतिर्देशोविकारमुखमीरणम् । असन्देहोऽनुबन्धश्चरोगाणां सम्प्रकाशितः ॥ २९ ॥ दोषस्थानानिरोगाणांगणानानात्मजाश्चये । रूपंपृथक्त्वाद्दोषाणां कर्मचापरिणामियत् ॥ ३० ॥ पृथक्त्वेन च दोषाणांनिर्दिष्टाः समुपक्रमाः । सम्यङ्महतिरोगाणामध्यायेतत्त्वदर्शिना ॥ ३१ ॥ इत्यग्निवेशकृतेतन्त्रेचरकप्रतिसंस्कृते रोगचतुष्के महारोगाध्यायोनामविंशोऽध्यायः समाप्तः ॥ २० ॥ अव यह अध्यायके उपसंहारमें श्लोक हैं कि इस महारोगाध्याय में रोगों का संग्रह प्रकृति, देश, काल, विकार, कारण, वातादिभेदसे अलग अलग कारण स्वभाव रोगोंका निश्चय, रोगों का अनुबन्ध, दोषोंके स्थान, रोगोंके गण, विकारोंकी अनेकता, दोषोंके अलग अलग धर्म, और उनके परिणामि कर्म, तथा वातादि • दोषोंकी अलग अलग चिकित्सा यह सव तत्त्ववेत्ता महात्मा पुनर्वसुजीने कथन किया है ॥ २९ ॥ ३० ॥ ३१ ॥ इति श्रीमहर्षिचरक ० पं० रामप्रसादवैद्य० भाषाटीकायां महारोगाध्यायो नाम विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥ एकविंशोऽध्यायः । (२३७) + अथातोऽष्टौनिन्दितीयमध्यायं व्याख्यास्यामइतिहस्माहभग वानात्रेयः । अब हम अष्टौनिंदितीय नामके अध्यायकी व्याख्या करते हैं ऐसा आत्रेय भगवान् कहने लगे । आठप्रकारके निन्दनीय पुरुष । इहखशरीरमधिकृत्याष्टौपुरुषानिन्दिताभवन्ति । तद्यथा-अतिदीर्घश्चातिह्रस्वश्चातिलोमा चालोमाचातिकृष्णश्चातिगौरश्चातिस्थूलश्चातिकृशश्चेति ॥ १ ॥ इस शास्त्रमें आठ प्रकारके शरीरोंवाले पुरुष निन्दनीय कहेजातें हैं । वह आठ इस प्रकार हैं जैसे- बहुत लंबा बहुत छोटा, बहुत बालोंवाला, जिसके शरी
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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