SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रस्थान - अ० २०. ( २३३ ) ' अब इसके उपरांत चालसि प्रकारके पित्तविकारोंका कथन करते हैं । अनिके तापके समान ताप, जलन, दाह, हृदयमें धकर आगसी जलना, धूवांसा निकलना, खट्टी डकार, विदाह, अंतर्दाह, अंशदाह, गर्मीको अधिकता, अतिस्वेद, अंगगंध, अंग और अवयवोंका फटना, शोणितक्केद, मांसक्केद, त्वग्दाह, मांसदाह, त्वचा और मांसका फटना, चर्मदरण रक्तके चकत्ते पड़ना, लाल रंगके फोडे, रक्तपित्त, रक्तमंडल, हरा वर्ण होजाना, हलदीका सा रंग होना, नीलिका, कछराली, कामला, मुखमें कडुवापन, मुखदुर्गंध, तृष्णाकी अधिकता, अतृप्ति, मुखपाक, गलपाक, नेत्रपाक, गुदपाक, शिश्नपाक, जविसंज्ञक रक्तका क्षय, अंधकार प्रतीत होना, हरे तथा हलदीके वर्णके समान नेत्र, मूत्र, पुरीष, त्वचाका वर्णहोजाना, यह चालीस पित्त के विकार हैं। पित्तके विकार असंख्य होते हैं । परंतु उन असंख्योंमें जो मुख्य हैं उन ४० विकारोंका यहां कथन किया गया है ॥ १६ ॥ सर्वेष्वपिखल्वेतेषुपित्तविकारेष्वन्येषुचानुक्तेषुपित्तस्येदमात्मरूपमपरिणामिकर्मणश्चस्वलक्षणयत्तदुपलभ्यतदवयवंवावि मुक्तसन्देहाः पित्तविकारमेवाध्यवस्यन्तिकुशलाः ॥ १७ ॥ इन सब पित्तविकारों में तथा जो यहां नहीं भी कहे उन अन्य पित्तविकारोंमें - पित्तके आत्मिक स्वभाव और परिणामोंको तथा पित्तके कर्म और लक्षणों द्वारा पित्तके अंशविकारादि देखकर चतुरलोग निस्सन्देह उस रोगको पित्तजन्य 'मानते हैं ॥ १७ ॥ . तद्यथा । औष्ण्यंतैक्ष्ण्यंलाघवमनतिस्नेहवर्णश्चशुक्लारुणवजगन्धश्च विस्रोरसौचकटुकाम्लपित्तस्यात्मरूपाणि । एवंविधत्वाञ्चकर्मणः स्वलक्षणमिदमस्यभवति । तंतंशरीरावयवमाविशतोदाहोष्मपाकस्वेदक्लेदकोथस्राव रागाः यथास्वञ्चगन्धवर्णरसादिभिनिर्वर्त्तनंपित्तस्य कर्माणितैरन्वितपित्तविकारमेवाध्यवस्येत् ॥ १८॥ अब पित्तके कर्म और लक्षणोंको कहते हैं जैसे उष्णता, तीक्ष्णता, लघुता, किंचित्स्नग्धता, शुक्ल और अरुणवर्णसे भिन्न वर्णवाला, दुर्गंधित, पूति, कटु, खट्टा, यह सब पित्तके आत्मधर्म हैं इस ही प्रकारके इसके कर्म और लक्षण होते हैं। - जब यह कुपित होकर जिस २ अंगमें जाता है उसी २ अंगमें दाह, गर्मी, पाक, स्वेद, क्लेद, कोथ, स्राव, लाली यह लक्षण होतेहैं और पित्तके धर्मवाले ही गंध,
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy