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________________ भणवापुनः ॥ नहान चिकित्सा किये जाकारके दारुण . . सूत्रस्थान-अ० १८. (२१७) जनयन्तिभृशंशोथंवेदनाश्चपृथग्विधाः। तशीघ्रकारिणरोगरोहिणीकेतिनिर्दिशेत् ॥३३॥ त्रिरात्रपरमंतस्यजन्तार्भवतिजीवितम् । कुशलेनत्वनुप्राप्तःक्षिप्रंसम्पद्यतेमुखी ॥३४॥ जिस मनुष्यके वात पित्त कफ यह तीनों ही एककालमें कुपित होकर जीभकी 'जडमें स्थित होजाते हैं उसकी जीभकी जड दाहयुक्त ऊंचा सा शोथ प्रगट कर देतहें इस शोथमें नाना प्रकारको पीडा उत्पन्न होतीहै इस शीघ्रमारक रोगको रोहिणिका, कहतेहैं इसके होनेसे मनुष्य तीन दिनसे अधिक नहीं जीसकता । इस लिये यदि कुशल चिकित्सकसे शीघ्र यल करायाजोव तो मनुष्य वचसकताहै ॥ ३२-३४॥ सन्तिह्येवंविधारोगाःसाध्यादारुणसम्मताः। येहन्युरनुपक्रान्तामिथ्यारम्भेणवापुनः ॥३५॥ अन्य भी जो इस प्रकारके दारुण रोगहैं वह युक्तिपूर्वक शीघ्र कुशल वैद्य द्वारा चिकित्सा किये जानसे साध्य होतेहैं । और वही रोग उचित यलोंके शीघ्र न होनेसे अथवा अनुचित यत्नोंके होनेसे शीघ्र मारडालतेहैं ॥ ३५ ॥ व्याधिके साध्यासाध्य भेद।। साध्याश्चाप्यपरेसन्तिव्याधयोमृदुसम्मताःयत्नायनकृतयेषु कर्मसिध्यत्यसंशयम् ॥ ३६ ॥ असाध्याश्चापरेसन्तिव्याधयो याप्यसंज्ञिताः। सुसाध्येऽपिकतंयेषुकर्मयाप्यकरभवेत् ॥३७॥ सन्तिचाप्यपरेरोगाःकर्मयेषुनसिध्यति । आपयत्नरुतवैद्यैर्न तान्विद्वानुपाचरेत् ॥ ३८॥ बहुतसे ऐसे मृदु रोग हैं जो शीघ्र यत्न करनेसे तो साध्य हैं ही परन्तु विना चिकित्साके भी साध्य होजातेहैं ॥ ३६ ॥ और बहुतसे रोग असाध्य हैं । वहुतसे याप्य होतेहैं। जिन असाध्य और याप्य रोगोंमें योग्य चिकित्सा होनेपर भी वह रोग नाशकारक ही रहते हैं। और ऐसे २ अन्य भी बहुतसे रोग हैं जो सुयोग्य वैद्योंद्वारा चिकित्सा किये जाने पर भी साध्य नहीं होसकते विद्वान् वैद्यको उचित है जो रोग यत्नद्वारा साध्य न होसके उसकी चिकित्सा न करे ॥ ३७ ॥ ३८ ॥ साध्याश्चैवाप्यसाध्यांश्चव्याधयोद्विविधाःस्मृतासमृदुदारुणभेदेनतेभवन्तिचतार्वधाः ॥३९॥तएवापरिसंख्येयाभिद्यमाना
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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