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________________ (२१०) चरकसंहिता-भा० टी०। निजशोथ लक्षण। निजास्तुपुनः स्नेहस्वेदनवमनविरेचनास्थापनानुवासनशिरोविरेचनानामयथावत्प्रयोगान्मिथ्यासंसर्जनाद्वा । छर्यलसक. विसूचिकाश्वासकासातीसारशोषपाण्डुरोगज्वरोदरप्रदरभगन्दराशेविकारातिकर्षणैर्वा । कुष्ठकण्डूपिडकादिभिर्वाछर्दिक्षवथद्वारशुक्रवातमूत्रपुरीपवेगधारणैर्वाचर्मरोगोपवासकर्षितस्यवा। सहसातिगुर्वम्ललवणपिष्टानफलशाकरागदधिहरीतकमद्यमन्दकविरूढयावशूकशमीधान्यानूपौदकपिशितोपयोगान्मृत्पंकलोष्ट्रभक्षणाल्लवणातिभक्षणाद्वागर्भसम्पीडनादामगर्भप्रपतनात्प्रजातानाञ्चमिथ्योपचारादुदीर्णदोषत्वाच्छोथाःप्रादुर्भवन्ति । इत्युक्तःसामान्यो हेतुः ॥२॥ निज शोथ, वमन, विरेचन,आस्थापन,अनुवासन और शिरोविरेचनके अनुचित प्रयोगसे अथवा इनमें कुपथ्यादि होनेसे उत्पन्न होताहै । ऐसे हीः वमन, अलसक, विसूचिका, श्वास, खांसी, अतिसार, शोष, पांड, उदररोग, प्रदर, भगंदर, अर्श, इनके कारणसे क्षीणहुए पुरुषों के भी शोथ उत्पन्न होजाताहै। एवं कुष्ठ,खाज, पिडका आदिने अथवा वमन, छींक, डकार, शुक्र,अधोवात,मल और मूत्रके वेगके धारणसे और चर्मरोग तथा उपवाससे कृश हुए मनुष्पके भी शोय उत्पन्न होजाताहै । और एकाएकी बहुत भारी, खट्टे, नमकीन, पिष्टपदार्थ, फल, शाक, राग, दही, हरित, मद्य, मंदक, अंकुर आयेहुए धान्प,शुकधान्य, शमीधान्य, अनूपसंचारी और जलचाग जीवोंके बहुत मांस खानसे । मट्टी, कीच और रोडके खानेस। अधिक नमक बानो । गर्भके पीडन या पात होनेसे अथवा प्रसूतकालमें मिथ्या उपचार होनेसे। या उखडे हुए दोषीको रोक लेनेसे शोय उत्पन्न होताहै । यह शोथके सामान्य कारण कहे गयेहे ॥२॥ __ वातजशोथ। अयंत्वत्र विशेषः । शीतरुक्षलघुविपदश्रमोपवासातिकर्पणक्षेपणादिभियुःप्रकुपितःत्वङ्मांसशोगितादीन्यभिभूयशोथअनयति । लक्षिप्रोत्थापनप्रशमोभवति । श्यावारुणवर्णः प्रकृतिवांवाचलास्पन्दनःखरपरुपभिन्नत्वग्लोमाच्छिद्यतइव
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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