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________________ सूत्रस्थान अ०१७. शिरोरोगोंके कारण। सन्धारणादिवास्वप्नाद्रात्रौजागरणान्मदात् । उच्चैर्भाष्यादवश्यायात्प्राग्वातादतिमैथुनात् । गन्धादसात्म्यादाघाताद्रजोधूमहिमातपात् ॥७॥ गुर्वम्लहरितादानादतिशीताम्बुसेवनात् । शिरोऽभितापादृष्टामाद्रोदनाद्वाष्पनिग्रहात् ॥ ८॥ मेघागमान्मनस्तापादेशकालविपर्ययात् । वातादयःप्रकुप्यन्तिशिरस्यसंप्रदुष्यति ॥९॥ ततःशिरसिजायन्तेरोगाविविधलक्षणाः ॥१०॥ मलमूत्रका वेग रोकनेसे, दिनमें सोनेसे, रात्रि में जागनेसे, मदसे, बहुत ऊंचे भाषणसे, सरदीसे, पूर्वकी पवनसे, आतिमैथुनसे, असात्म्य गंध लेनेसे, रज, धूम, वायु, धूप इनके सेवनसे, गुरु, अम्ल. शाक, सब्जी भादिक खानेसे अत्यंत . प्रीतल जल पीनेसे, शिरमें चोट आदि लगनेसे, आमक दोषसे, रोनेसे, आंसुओंके कनसे अथवा भाफके निग्रहसे, बादलोंके होनेसे, मनके संतापसे, देश और हालकी विकृतिसे ऐसे २ कारणोंसे वातादि दोष कुपित होकर शिरके रक्तको दूषित करदेतेहैं तब शिरमें अनेक प्रकारके लक्षणोंवाले रोग उत्पन्न होतेहैं ॥ ७ ॥८॥९॥१०॥ शिरका लक्षण । प्राणाप्राणभृतांयत्रश्रिताःसर्वेन्द्रियाणिच । यदुत्तमाङ्गमङ्गानांशिरस्तदभिधीयते ॥ ११ ॥ जिस जगह प्राणधारियोंके प्राण हैं और सब इंद्रिये आश्रित हैं तथा जो सब अंगोंमें उत्तम अंग है उसको "शिर" कहतेहैं ॥ ११ ॥ वातादिजन्य शिरोरोग। अर्हावभेदकोवास्यात्सर्ववारज्यतेशिरः। प्रतिश्यामुखनासाक्षिकर्णरोगाःशिरोभ्रमाः। आतंशिरसःकम्पोगलमन्याहनुग्रहः ॥ १२ ॥ विविधाश्चापरेरोगावातादिक्रिमिसम्भवाः । पृथग्दृष्टास्तुयेपञ्चसंग्रहेपरमर्षिणा । शिरोगदास्तानशृणुमे यथास्वैर्हेतुलक्षणैः ॥ १३॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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