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________________ बिलाच ही आयु और मय धातुओंमें समता महसुखायुषाम्॥ सूत्रस्थान-अ० १६. (१८९) त्यागाद्विषमहेतूनांसमानाञ्चोपसेवनात् । विषमानानुबध्नन्ति जायन्तेधातवःसमाः ॥ ३४ ॥ धातुओंको विषम करनेवाले जो हेतु हैं उनको त्यागनेसे और साम्यावस्था में रखनेवाले हेतुओंके सेवनसे धातुओंमें विषमता नहीं आती और समता प्राप्त. रहती है ॥ ३४॥ समैस्तुहेतुभिर्यस्माद्धातन्सअनयेत्समान । चिकित्साप्राभृतस्तस्मादातादेहसुखायुषाम्॥३५॥धर्मस्यार्थस्यकामस्यत्रिलोकस्याभयस्यचादातासम्पद्यतेवैद्योदानादेहसुखायुषाम्॥ ३६ सम हेतुओंसें जिसलिये धातुओंमें समता प्राप्त करताहै इसीलिये चिकित्सासपन्न वैद्य ही आयु और मुखका दाता मानना चाहिये । धर्म, अर्थ, काम, और त्रिलोकोक सुखका कारण आरोग्यताको प्राप्त करनेवाला होनेसे वैद्यही देहसुख और आयुका दाता कहाजासकता है ।। ३५ ॥ ३६ ॥ अध्यायका संक्षिप्त वर्णन । तत्रश्लोकाः॥ चिकित्साप्राभृतगुणोदोषोयश्चेतराश्रयः। योगायोगातियोगानांलक्षणंशुद्धिसंश्रयम्॥ ३७॥ बहुदोषस्थलिङ्गानिसंशोधनगुणाश्चये। चिकित्सासत्रमात्रश्चसिद्धिव्यापत्तिसंश्रयम्॥३८॥. याचयुक्तिश्चिकित्सायांयंचार्थकुरुतेभिषक्॥चिकित्साप्रामृतेऽध्यायेतत्सर्वमवदन्मनिः ॥ ३९ ॥ इति अग्निवेशकतेतन्त्रेचरकप्रतिसंस्कृतेकल्पनाचतुष्कचि कित्साप्राभृतीयोनामषोडशोऽध्यायःसमाप्तः ॥१६॥ अध्यायपूर्तिमें यह श्लोक हैं कि इस चिकित्साप्रामृत अध्यायमें चिकित्साप्राभूत वैद्यके गुण और मूर्ख वैद्यके दोषसंशोधन, विषके योग, अयोग, अतियोग, इनके. लक्षण, बहुत दोषके चित्र, और संशोधनके गुण, सिद्धि और व्यापचिके आश्रः यीभूत चिकित्साका सूत्रमात्र, चिकित्साके सम्बन्धमें युक्ति, जिसकार्य के लिये वैद्य चिकित्सा करताहै यह सर्व मुनिजीने वर्णन कियाहै ॥ ३७ ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ : इति श्रीमहर्षिचरक०५० रामप्रसाद. प्रसादन्याख्यभाषाकायां चिकित्सा प्रामृतीयोनाम.षोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥ . : . : .. ..--.
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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