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________________ सूत्रस्थान - अ० १५. त्वाब्राह्मणान्स्वस्तिवाचनंप्रयुक्ताभिराशीर्भिरभिमन्त्रितांमधुमधुकसैन्धवफाणितोपहितांमदनफलकषायमात्रांपाययेत् ॥११॥ इसके उपरान्त जिसको वमन विरेचन कराना हो उसको यथोचित स्नेहन और स्वेदन द्वारा नम्र बनालेवे । यदि उसको इस अवसर में कोई मानसिक या शारीरिक तीव्र व्यथा शीघ्र उपस्थित हुई हो तो पहले उसका यत्न करले । फिर विकार शांत होनेपर कुछ काल ठहरकर स्नेहन, स्वेदन करे | जब वह स्नेह स्वेद द्वारा मृदु होजाय और स्वस्थचित्त हो तथा भोजन कियाहुआ अच्छीतरह पाचन होचुकाहो तब उसका शिर धुलावे और सुगंधित द्रव्यों से शरीरको सुगंधित करे तथा माला आदि धारण करा और शुद्ध वस्त्र पहनाकर देवता, अग्नि, ब्राह्मण, गुरु, वृद्ध, और वैद्य आदिकोंका पूजन करावे । फिर शुभ नक्षत्र, तिथि, करण, मुहूर्तमें ब्राह्मणोंके आशीर्वाद के मंत्रोंद्वारा अभिमंत्रित कियाहुआ मधु मुलहटी, सेंधानमक, फाणित; यह यथोचित मैनफलके क्कायमें मिलाकर पीवे ॥ ११ ॥ मदनफलकी मात्राका प्रमाण । (१७७) मदनफलकषायमात्राप्रमाणन्तुखलु सर्वसंशोधनमात्राप्रमाणानिच प्रतिपुरुषमपेक्षितव्यानि भवन्ति । यावद्वियस्य संशोधनंपतिवैकारिकदोषहरणायोपपद्यते ॥१२॥ नचातियोगायो - गाय तावदस्यमात्राप्रमाणंवेदितव्यं भवति ॥ १३ ॥ मैनफलके क्वाथकी मात्राका प्रमाण तथा अन्य संशोधन द्रव्योंकी मात्राका प्रमाण मनुष्य के बलावल के अनुसार है । जितनी मात्रासे पान कीहुई औषधि यथोचित शोधन कर दे और विकारोंकी शांति करे उसके लिये उतनी ही मात्र. afe हैं | औषधका अतियोग और अयोग न होना ही औषधकी मात्राका प्रमाण जानना चाहिये ॥ १२ ॥ १३ ॥ पीतवन्तन्तुखल्वेनं मुहूर्तमनुकांक्षेत् । तस्ययदाजानीयात्स्वेदप्रादुर्भावेणदोषप्रविलयनमापद्यमानंलोमहर्षेणचस्थानेभ्यः प्र चलितं कुक्षिसमाध्मानेन चकुक्षिमनुगतंहृल्लासास्यश्रवणाभ्यामपचितोर्द्धमुखीभूतमथास्मैजानुसममसम्बाधं सुप्रयुक्तास्तरणोत्तरप्रच्छदोपधानं स्वापाश्रयमासनमुपवेष्टुंप्रयच्छेत् ॥ १४ ॥ औषध पीकर मनुष्य थोड़ी देर तक चित्तको टिकाकर वमनकी प्रतीक्षा करे फिर जब पसीने आने लगें तो समझले कि अब वातादिदोष लीन होगयेहैं। अथवा १२
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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