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________________ विधिभूमौसपदिश्यते ॥ पत्थरकी शिला सूत्रस्थान-अ० १४. . (१६९) ॥ ५५॥ सहडिकाभिरङ्गारपूर्णाभिस्ताञ्चसर्वशः। परिवार्य्यान्तरारोहेदभ्यक्तः स्विद्यतेसुखम् ॥ ५६ ॥ " न बहुत ऊंची न लंबी और न चौडी एक उचित गोल, छिद्ररहित कडी भीत वाली कुटिया बनावे उसको कूठ आदि आषधियोंसे लेपन करे । फिर वैद्य उस कुटीमें आकर, मृगछाला, कौशेयवस्त्र, गुदडी कंबल, गोनक आदि बिछाकर शय्या वनावे और इस कुटीके चारों ओर भीतकी जडमें अंगारोंसे भरकर हांडिये रखदे फिर स्निग्धगात्र रोगीको इसमें सुलावे तो सुखपूर्वक स्वेदन होगा । इसको कुटीस्वेद कहतेहैं ॥ ५४॥ ५५ ॥ ५६ ॥ भूस्वेदका वर्णन । यएवाश्मघनखेदविधिभूमौसएवतु ।। - प्रशस्तायांनिवातायांसमायामुपदिश्यते ॥ ५७ ॥ अश्मघन स्वेदकी समान ही भूस्वेद होताहै अश्मघन स्वेदमें पत्थरकी शिला तपाई जातीहै और भूस्वेदमें निर्वातस्थानमें पवित्र आर सीधी भूमि तपाकर भूस्वेद होतोह ॥ ५७॥ .. कुम्भीस्वेदका वर्णन । . कम्भीवातहरक्वार्थपर्णाभूमौनिखातयेत्। अर्द्धभागंत्रिभाग वाशयनंतत्रचोपरि ॥ ५८॥ स्थापयेदासनवापिनातिसान्द्रपरिच्छदम् । अथकुम्भ्यांसुसन्तप्तान्प्रक्षिपेदयसोगुडान् ॥ ॥ ५९॥ पाषाणान्वोष्मणातेनतत्स्थः स्विद्यतिनासुखम् । सुसंवृताङ्गस्वस्यङ्गः स्नेहैरनिलनाशनः ॥६॥ पहले वातनाशक काथोंसे घडेको आधा या तीन भाग भरकर जमीनमें गाडदे उसके ऊपर रोगीकी शय्या या बैठनेयोग्य’ कोई वस्तु रखकर ऊपर बारीक वस्त्र विछाद उस पर तैलादिसे स्निग्धहुए रोगीको कंबल आदि वस्त्र लपेटकर विठा या लेटा देवे और पत्थर या लोहेके टुकडे आगमें लालंकरके नीचे के घडेमें डाले उससे भाफ निकलकर जो रोगीको पसीना आवे उसको कुम्भीस्वेद कहतेहैं५८॥१९॥६॥ कूपस्वेदका वर्णन । कूपंशयनविस्तारंद्विगुणञ्चापिवेधतः । देशनिवातेशस्तेच कुर्य्यादन्तः सुमार्जितम् ॥ ६१ ॥ हस्त्यश्वगोखरोष्ट्राणांक
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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