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________________ (१५६) चरकसंहिता-भा० टी०॥ और जो, बेर, कुलथी इनके यूष, गुड, खांड, अनारका रस, दही, और त्रिकुटा इनके योगसे स्नेहपान करावे, इस प्रकार स्नेहके योगका संग्रह कहा है। तिल,स्नेह,फाणित,इनका भिलाकर भोजनसे पहले.सेवन करे तो शरीरको चिकना करते हैं ॥ ८३॥ . . . . . . . . कृशराश्चबहुस्नेहास्तिलकाम्बलिकास्तथा । फाणितंशृङ्गावरश्चतैलञ्चसरयासह ॥८४ ॥ पिबेद्रक्षोघतैमासमणेऽश्नीयाच भोजनम् । तैलंसुरायामण्डेनवसांमज्जानमेववा ॥ ८५ ॥ पिबेत्सफाणितक्षीरनरःस्नियतिवातिकः॥धारोष्णस्नेहसंयु क्तपीत्वासशर्करपयः॥ ८६॥ . . खिचडी तिल कांबलिक बहुतसे स्नेहको साथ सेवन करनेसे शरीर चिकना होताहै एवं फाणित. सोंठ, तैल, सुरा,इनको मिलाकर पीवे,जीर्ण होनेपर घृतऔर मांसरससे भोजन करे तो रूक्ष शरीर भी स्निग्ध होय । वातप्रधान मनुष्य वारुणमिंडके । साथ तैल मिलाक पीवे अथवा केवल वसा और मज्जाको पानकरे।।८४॥८॥अथवा फाणितके साथ दूध पीनेसे वातप्रधान मनुष्यका शरीर चिकना होताहै । अथवा . धारोष्णदूध, घृत और खांड मिलाके पीवे ॥ ८६ ॥ . . . . . . स्निग्धकरना। . .. नरःस्निह्यतिपीत्वावासरंदनःसफाणितम्। पाञ्चप्रसूतिकीपेया पायसोमाषमिश्रकः ॥ ८७ ॥ क्षीरसिद्धोबहुस्नेहःस्नेहयेदचिरान्नरम् । सर्पिस्तैलवसामज्जातण्डुलप्रसृतैः कृता॥८८ ॥ पाञ्चप्रसृतिकीपेयापेयास्नेहनमिच्छता । ग्राम्यानूपोदकमांसं गुडंदधिपयस्तिलान् ॥८९॥ कुष्ठीशोषीप्रमेहीचस्नेहनेनप्रयोजयेत् । स्नेहैर्यथाखंतान्सिद्धैःस्नेहयेदविकारिभिः ॥९०॥ अथवा दहीको मलाई और फाणितके पीनेसे मनुष्य स्निग्ध होजाताहै ।अथवा आगे कहीहुई पांचप्रसूतिपेया या दूधमें सिद्ध कीहुईं उडदोंकी खीर अत्यंत चिकनी होनेसे मनुष्यको शीघ्र स्निग्ध करदेतीहै । घी, तेल, वसा,मज्जा और चावलोंको दोरछटांक लेकर इकटेकर पकाये इसको पांचप्रसृतिकी पेया कहतेहैं अपने शरीरको चिकना करेनकी इच्छा करनेवाला इस पेयाको पीवे । कोढी,शोथवाला, प्रमहरोगी स्नेहनके लिये ग्राम्य और अनूप संचारी जीवोंके मांसरस तथा जलसंचारी मांस तपेया या घी, तेल, कहतेहैं अपने दगी
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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