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________________ सूत्रस्थान -० १३. ( १४७ ) जी स्नेह किसी अन्य द्रव्यसे न मिला हो उसको विचारणा नहीं कहते उसका नाम अच्छस्नेह है । और किसी अन्य द्रव्यके योगसे स्नेहको विचारणा कहते हैं अच्छस्नेह अर्थात् स्वच्छस्नेहको वैद्य लोग स्नेहका प्रथम कल्प मानतेर्हे ॥ २४ ॥ स्नेहकी चौंसठ विचारणा । रसैश्चोपहतःस्नेहः समासव्यासयोगिभिः । षड्भिस्त्रिषष्टिधासंख्याः प्राप्नोत्येकश्चकेवलः ॥ २५ ॥ एवमेषाचतुःषष्टिः स्नेहानां प्रविचारणा । सात्म्यर्तुव्याधिपुरुषान्प्रयोज्याजानताभवेत् ॥ २६ ॥ मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय, इन छः रसोंके मिलाप, विकल्प और अंशयोगसे रेस ६३ प्रकारके होते हैं इन तिरसठोंके संयोग भेदसे स्नेह भी ६३ प्रकारके होते हैं । और एक अच्छस्नेह (केवल स्नेहमात्र ) है इस प्रकार रस संयोगभेदसे ६३ और बिना किसी संयोगसे केवल एक यह सब मिलाकर स्नेहकी ६४ प्रकारकी विचारणा हुई, स्नेहके प्रकरण और प्रयोगको जाननेवाला वैद्य शरीरका सात्म्य, ऋतु भेद, व्याधि, मनुष्यका बलावल - विचारकर स्नेहका प्रयोग करे ॥ २९ ॥ २६ ॥ मात्राओंका वर्णन । अहोरात्रमहः कृत्स्नमर्द्धाहञ्च प्रतीक्ष्यते। प्रधानामध्यमाह्रस्वास्तेहमात्राजरांप्रतेि ॥ २७ ॥ इतितिस्रः समुद्दिष्टामात्राः स्नेहस्य मानतः । तासां प्रयोगान्वक्ष्यामि पुरुषं पुरुषंप्रति ॥ २८ ॥ प्रधानमात्रा मध्यम मात्रा हस्वमात्रा इन भेदोंसे स्नेहोंकी मात्रा (खुराक) तीनप्रकारकी होती है । जो मात्रा एकदिन रातेंम परिपाकको प्राप्त हो उसको प्रधान मात्रा कहतें हैं । जो केवल दिन में ही पाचन होजाय उसको मध्यम मात्रा कहते हैं । जो आधे दिनमें हो पाचन होजाय उसको ह्रस्वमात्रा कहते हैं । अब उन स्नेहकी मात्राओंको पुरुषभेदस कथन करतेहैं ॥ २७ ॥ २८ ॥ • उत्तममात्राके योग्य पुरुष । प्रभूतस्नेहनित्यायेक्षुत्पिपासासहानराः । पावकश्चोत्तमबलो - येषां चोत्तमाबले ॥२९॥ गुल्मिनः सर्पदष्टाश्चविसर्पोपहताश्चये । उन्मत्ताःकृच्छ्रमूत्राश्चगाढवर्चसएवच ॥ ३० ॥ (१) सुश्रुत के उत्तर तंत्रके ६३ वे अध्यायमें ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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