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________________ सूत्रस्थान-अ० १२- ; (१३७) स्निग्धादि गुणयुक्त शरीरमें विचरता हुआ वायु स्निग्धादिगुणोंसे मिलकर शान्तिको प्राप्त होताहै । अर्थात् वातसे विपरीत चिकने आदि गुणयुक्त पदार्थोंसे स्निग्धता आदि गुण प्राप्त होनेपर रूक्षता आदि गुण त्यागताहुआ शांत होजाताहै ॥६॥ वायोविदका मत । तच्छ्रुत्वाबडिशवचनमवितथमृषिगणैरनुमतमुवाचवायोंविदो राजर्षिः। एवमेतत्सर्वमनपवादंयथाभगवानाह । यानितुखलुवायोःकुपिताकुपितस्यशरीराशरीरचरस्यशरीरेषुचरतःकाणिबहि-शरीरेभ्योवाभवन्तितेषामवयवान्प्रत्यक्षानुमानोपमानः साधयित्वानमस्कत्यवायवेयथाशक्तिप्रवक्ष्यामः॥६॥ इस प्रकार कहेहुए यथार्थ, और ऋषियोंके बहुमत अर्थात् मानेहुए बडिशके वाक्यको सुनकर राजर्षि वार्योंविद कहनलेगे कि आपने जैसे कहाहै यह निर्विवाद है अर्थात् सबको मंतव्य और यथार्थ है । अब शरीरसे वाहिर विचरतेहुए कुपित अथवा शान्तिको प्राप्त हुए वायुके जो २ कार्य शरीरके भीतर और वाहर होतेहैं अर्थात् कुपित या विना कुपितवायु शरीरमें अथवा बाहिर जो २ कार्य करताहै उनसवको प्रत्यक्ष अनुमान और आप्तोपदेश द्वारा सिद्ध करतेहुए वायुको नमस्कार करके यथाशक्ति वर्णन करताहूं ॥६॥ वायुके भेद और कर्म । वायुस्तन्त्रयन्त्रधरःप्राणोदानसमानव्यानापानात्माप्रवर्तकश्चेष्टानामुच्चावचानांनियन्ताप्रणेताचमनसः । सर्वेन्द्रियाणाम योतकः । सर्वेन्द्रियार्थानामभिवोढासर्वशरीरंधातुव्यूहाकरः सन्धानकरःशररिस्यप्रवर्तकोवाचःप्रकृतिःस्पर्शशब्दयोःश्रोत्रस्पर्शनयोर्मूलहर्षोत्साहयोयोनिःसमीरणोऽग्नेर्दोषसंशोषणः । क्षेताबहिमलानांस्थलाणुस्रोतसांभेत्ताक गर्भाकृतीनामायु- . षोऽनुवृत्तिप्रत्ययभूतोभवत्यकुपितः॥ ७॥ इस शरीरतंत्र और शरीररूपी यंत्रके धारण करनेवाला वायु-प्राण, उदान, समान, व्यान, अपान, इन भेदोंसे पांच प्रकारका है । यह चलना फिरना आदि शरीरकी चेष्टाका प्रवर्तक है, और ऊंची नीची क्रियाका नियंता है। मनका प्रणेता, सब इंद्रियोंमें उद्योग करनेवाला, सब इंद्रियोंको चलानेवाला, सब शरीरकी धातु ओंका वाहक, शरीरका संधान करनेवाला, वाणीको प्रवृत्त करनेवाला, शब्द और
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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