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________________ ( १२६ ) चरकसंहिता - भा० टी० 1 9 इसके अधिक सेवन करनेको अतियोग, कुछ भी न खानेको अयोग, और आहारके मिथ्यासेवनको मिथ्यायोग कहते हैं । मिथ्यायोगको अपरिमित भोजनके वर्णनमें विशेषरूपसे कहेंगे ॥ ३७ ॥ स्पर्शातियोगादिका वर्णन । तथातिशीतोष्णानां स्पृश्यानांस्नानाभ्यङ्गात्सादनादीनाञ्चात्युपसेवनमतियोगः । सर्वशोऽनुपसेवनमयोगः । विपमस्थानाभिघाताशुचिभूतसंस्पर्शादयश्चेतिमिथ्यायोगः ॥ ३८ ॥ अत्यंत शीतल और अतिउष्ण जलसे देर तक स्नान करना, मालिश, उद्वर्तन आदिका अतिसेवन अतियोग कहाता है । एकदम किसी स्पर्शकारक वस्तुका सेवन न करना अयोग है । ऐसे ही विषमस्थानमें फिरना, बैठना, सोना, चोट लगना · तथा अपवित्र वस्तुके स्पर्शआदिको मिथ्यायोग कहते हैं । यह स्पर्शके अतियो-गादि हुए ॥ ३८ ॥ स्पर्शनेन्द्रियको सर्वव्यापकता । तत्रैकंस्पर्शनेन्द्रियमिन्द्रियाणामिन्द्रियव्यापकंतत: समवायि स्पशनव्या तेर्व्यापकमपिचचेतस्तस्मात्सर्वेन्द्रियाणांव्यापकः स्पर्शकृतोयोभावविशेषः सोऽयमनुपशयात्पञ्चविधस्त्रिविधविकल्पोभवत्यसात्म्येन्द्रियार्थसंयोगः । सात्म्यार्थीद्युपश यार्थः ॥ ३९ ॥ तब इंद्रियामं एक स्पर्शनेंद्रिय ही नेत्र, कर्ण, रसन, आदिमं व्यापक है क्योंकि राव इंद्रियांम स्पशद्रिय विद्यमान है । और सब इंद्रियं अपने विषय में संयोग स्पर्श द्वारा ही क्रिया करसकती है (जैसे शब्द के परमाणु, जब कर्णेन्द्रियसे स्पर्श करतेह तब कर्णेन्द्रिय शब्दको जान सकती है ऐसे ही सबमें जानो) इन्द्रिय और इन्द्रियके विषयके स्पर्शम मन व्यापक है । इसलिये स्पर्श होनेवाली वायु (स्पर्शशक्ति) सबम प्रधान है। सो स्पर्शजन्य भाव पांच इंद्रियमि व्यापक होनेसे पांच प्रकारका होता है। वह पांच प्रकारका इंद्रिय और विषयका संयोग अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग, इन तीन प्रकारका है और यह तीनप्रकारका योग असात्म्य अर्थात् आत्माकं मतिकूल होता है, और ययोचित संयोग आत्माके अनुकूल होताहे ॥ ३९ ॥ कर्मकृत आयतनका वर्णन । कर्म्मवाङ्मनः शरीरप्रवृत्तिः । तत्रवाङ्मनःशरीरातिप्रवृत्तिरतियोगः सर्वशोऽप्रवृत्तिरये गः ॥४०॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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