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________________ ( १२२ ) चरकसंहिता कुमा० टी० दितस्तनपान हासत्रासादीनाञ्च प्रवृत्तिलक्षणोत्पत्तिः कर्मसामान्ये फलविशेषोमेधाक्वचित्क्वचित्कर्मण्यमेधाजातिस्मरणमि 7 हागमनमितश्च्युतानाञ्चभूतानां समदर्शनेप्रियाप्रियत्वमतएवानुमीयते । यत् स्वकृतमपरिहार्यमविनाशिपौर्वदेहिक देवसंज्ञकमानुबन्धिककर्म्मतस्यैतत्फलमितश्चान्यद्भविष्यतीतिफलाद्दीजमनुमीयते । फलञ्च वीजात् ॥ २७ ॥ और यह देखने में भी आता है कि संतानके शरीरावयव माता पिताके समान नहीं होते । और एकही माता पितासे पैदा हुए पुत्रों के भी वर्ण, स्वर, आकृति, सत्त्व, बुद्धि, और भाग्य में भेद ( फरक ) होता है अर्थात् सव एकसे नहीं होते। ऐसे ही कुल जन्म, दास्य, ऐश्वर्य, इनमें भी बडाई छोटाई तथा किसीकी सुखायु और किसीकी दुःखाय व्यतीत होती दिखाई देती है। इसी प्रकार आयुमें न्यूनता अधिकता, और इस जन्म में किये हुए बहुतसे कर्मों का फल इसी जन्ममें न होना, विना ही किसीसे सीखे जन्मलेते ही बच्चेका रोना, स्तनपान करना, हँसना, दुःखित होना, इनसे भी पुनर्जन्म सिद्ध है । ऐसे ही बालकके जन्मसे शुभ तथा अशुभ लक्षणोंसे कर्म तुल्य होते हुए भी फलमें भेद होनेसे, एककामके करनेमें बुद्धिभेद होनेसे और इस लोकसे मरकर फिर इसी लोकमें आकर जन्म लिया है ऐसा बहुत मनुष्योंको स्मरण होजा: ता है इससे तथा एकही वस्तुमें एकका प्रेम दूसरेका विरोध देखने में आता है, ऐसे २ हेतुसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि जो २ जिस २ ने पूर्वजन्ममें किया है वह किसीसे मिटाया नहीं जाता वह अविनाशी है, उसी कर्मको लोकमे दैव उसीको अनुवन्धी कर्म (पुरारब्ध ) कहते हैं जिसका फल इस जन्ममें भोगना पडता है । ऐसे ही इस जन्मके किकर्मके फलको आगेको होनेवाले जन्म में भोगना पडेगा । जैसे फलसे बीज और वीजसे फल होता हैं, ऐसे ही कर्माधीन जन्म होता जाता है ॥२७॥ युक्तिसे पुनर्जन्मकी सिद्धि । युक्तिश्चैषाषड्धातुसमुदयाद्गर्भजन्मकर्तृकरणसंयोगात्क्रियाकृतस्यकर्मणःफलंनाकृतस्यनां कुरोत्पत्तिरबीजात् । कर्मसदृशं फलंनान्यस्माद्दीजादन्यस्यात्पत्तिरितियुक्तिः ॥ २८ ॥ १ पूर्वाऽभ्यरतस्मृत्यनुबन्धाज्जातस्य हर्षेभयशोकसंप्रतिपत्तेः ) न्या० भा० । जातः खंल्वयं कुमारकोऽस्मिञ्जन्मन्यग्रहीतेषु हर्ष भयशोकहेतुपु हर्पभयशोकान् प्रतिपद्यते लिंगानुमेयान् ते च स्मृत्यनुबन्धादुत्पद्यन्ते नान्यथा । स्मृत्यनुबन्धच पूर्वाभ्यासंमन्तरेण न भवति पूर्वाभ्यासश्च पूर्वजन्मनि सति नान्यथा ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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