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________________ ( ११६ चरकसंहिता - भा० टी० । सबका अंत है । यह संदेह कैसे हुआ उसको कहते हैं ( ॥ १ ॥ ) कुछ लॉग प्रत्यक्षवादी हैं वह कहते हैं कि हमको कोई परलोकको जाता या परलोकसे आकर जन्मलेता दिखाई नहीं देता इसलिये पुनर्जन्म या परलोकको हम नहीं मानते जो इंद्रि यद्वारा प्रत्यक्ष है उसीको हम मानते हैं अप्रत्यक्ष नहीं । इस प्रकार नास्तिकताको ग्रहण करते हैं ( ॥ २ ॥ ) दूसरे ( आस्तिकलोग ) अनुमानसे तथा आप्तवाक्यसे और श्रुतिवाक्यसे पुनर्जन्म सिद्ध है ऐसा मानते हैं (॥३॥ ) तीसरे जन्मका कारण माता पिता ही होते हैं सदासे ऐसा ही चला आया है इनसे सिवाय और कोई कारण नहीं (॥ ४ ॥ ) चौथे स्वभावको ही मानते हैं, अर्थात् जीव अपने आप ही जन्म लेता है अन्य कारण नहीं ( ॥ ५ ॥ ) पांचवें कहते हैं कि कोई इस संसा: ant रचनेवाला है वही इस जीवको उत्पन्न करता है ( ॥ ६ ॥ ) छठे कहते हैं यह विश्व में एक ऐसी शक्ति है जिससे मनुष्यादि उत्पन्न होते हैं और इसको रचनेवाला कोई नहीं । इसलिये संशय होता है कि पुनर्भव ( पुनर्जन्म ) होता है या नहीं । अब समाधान करते हैं कि धृष्टतासे नास्तिक ही बनजाना और युक्ति प्रमाण इत्यादिक न मानना इसका तो कुछ यत्न ही नहीं । यदि तुम कहो पुनर्जन्म प्रत्यक्ष नहीं अर्थात् दीखता नहीं; सो संसार में प्रत्यक्ष बहुत कम है और अप्रत्यक्ष बहुत है अर्थात् ऐसी बहुत वस्तुएं हैं जो प्रत्यक्ष तो नहीं परन्तु आप्तोपदेश, अनुमान, युक्ति इनसे स्पष्ट प्रतीत होती हैं। और देखिये तो सही जिन इंद्रियोंद्वारा हमको प्रत्यक्षकी उपलब्धि होती है वह इंद्रियें ही अप्रत्यक्ष हैं तो प्रत्यक्ष न होनेसे क्या इंद्रियोंका अभाव मानोगे ? ( कभी नहीं ) ॥ ५ ॥ प्रत्यक्ष वाधक । सताञ्च रूपाणामतिसन्निकर्षादतिविप्रकर्षादावरणात् करणदौबल्यान्मनोऽनवस्थानात्समानाभिहारादाभिभवादतिसौक्ष्म्याचप्रत्यक्षानुपलब्धिः । तस्मादपरीक्षितमेतदुच्यतेप्रत्यक्षमेवास्तिनान्यदस्तीतिश्रुतयश्चैतानकारणंयुक्तिविरोधात् ॥ ६ ॥ औरभी देखिये अनेक प्रकारसे रूपवाली वस्तुके विद्यमान रहते भी प्रत्यक्ष नहीं होता । जैसे अति समीप होनेसे अर्थात् नेत्रमें जो अंजन या अन्य कोई पदार्थ नेत्रसे छुआ देनेसे दिखाई नहीं पडता ऐसेही बहुत दूर होनेसे भी प्रत्यक्ष नहीं होता । एवं बीच में कोई भीत आदि होनेसे, इंद्रियकी दुर्बलतासे अथवा मनकी चञ्चलतासे अर्थात् मनके संयोग के बिना भी इंद्रियसे प्रत्यक्ष होने योग्य वस्तु-: का प्रत्यक्ष नहीं होता । ऐसे ही समान वस्तुओं में मिलजानेसे अर्थात् एक चावल *"
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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