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________________ (११४) चरकसंहिता-भा० टी०। एषणाओंका निर्देश। इहखलुपुरुपेणानुपहतसत्त्वबुद्धिपौरुपपराक्रमेणहितमिहचामुनिश्चलोकेसमनुपश्यतातित्रएषणाःपर्येष्टव्याभवन्ति ॥ इस संसार मन, बुद्धि, पुरुषार्थ और पराक्रमवाले पुरुषको इस लोक और परलोकके सुखकी इच्छा करतेहुए तीन प्रकारकी एषणा अर्थात् चाहनाएं प्राप्त करनी योग्य हैं ॥ १॥ ___ एषणाओंका वर्णन । तद्यथा। प्राणपणाधनपणापरलोकैपणेतिआसान्तुखल्वेषणानांप्राणैषणांतावत्पूर्वतरमापद्येतकस्मात्प्राणपरित्यागौहिसर्वत्यागः तस्यानुपालनस्वस्थस्यस्वस्थवृत्तिरातुरस्यविकारप्रशमनेऽप्रमादस्तदुभयमेतदुक्तंवक्ष्यतेच । तद्यथोक्तमनुवर्तमानः प्राणानुपालनादीर्घमायुरवाप्नोतीति । प्रथमैषणाव्याख्याता । भवति ॥ २॥ वह तीन एपणा यह हैं । १ प्राणषणा, २ धनैषणा, ३ परलोकैषणा, इन तीन । एपणाआम प्राणपणा अर्थात् प्राणरक्षामं यत्नवान् होना सबसे प्रथम कहाँह क्योंकि प्राणांके परित्याग होने पर ही सब वस्तुओंका परित्याग होजाताहै । इसीसे आरोग्य पुरुषको अपनी आरोग्यता ( तन्दुरुस्ती) की सावधानीसे रक्षा करना अत्या वस्यक है और रोगयुक्तको सर्वथा रोगको शांत करनेका उपाय करना चाहिये । यह बात कह भी चुकें और आगेको भी कहतेहैं कि जैसे स्वास्थ्यरक्षाके लिये पहले कायन करचुरह या कथन किये जायंगे उनके अनुसार वर्ताव करते हुए प्राणाका पालन करनेसे दीयोयु होताह । यह प्रथम एषणाका कथन किया गया ॥ २ ॥ धनकी एषणा। अथद्वितीयांधनैपणामापद्यते । प्राणेभ्योह्यनन्तरंधनमेवपय्येव्यंभवति । नयतःपापात्पापीयोऽस्तियदनुपकरणस्यदीर्घमायःतस्मादपकरणानिपय्यटुंयतेततत्रोपकरणोपायाननुव्याख्यास्यामः ॥३॥ सप गरी धनेषणा अर्यात् धनमाप्तिके लिये यल करनेका फयन करते क्योंकि माणसाने अनंता धनकी यावश्यकता होतदिइस पापसे बढकर संसारमं कोई भी
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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