SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०२ ) चरकसंहिता - भा० टी० । airat धातुओं और वातादिदोषों में विषमता ( यथोचित न होना ) विकार अर्थात् रोग कहा जाता है। और इनका ठीक होना आरोग्यता कहाँ है । सो आरोग्यताको सुख कहते हैं । रोगको दुःख कहते हैं ॥ २ ॥ चिकित्सा ल० । चतुर्णाभिषगादीनांशस्तानां चातुवैकते । प्रवृत्तिर्धातुसाम्यार्थाचिकित्सेत्यभिधीयते ॥ ३ ॥ धातुदोष आदिकी विकृतिमें उनको ठीक अर्थात् साम्यावस्थामें करने के लिये वैद्य आदि चारों पादोंकी जो योग्यतासे प्रवृत्ति है वह चिकित्सा कही जाती है ॥ ३ ॥ वैद्यके चार गुण | श्रुतेपर्यवदातृत्वं बहुशो दृष्टकर्मता । दाक्ष्यशौचमितिज्ञेयंवैद्ये गुणचतुष्टयम् ॥ ४ ॥ शास्त्रको अच्छी तरह से जाननेवाला, दूरदर्शी, ( रोगादिमें भविष्यत्को जानने, बाला) क्रियामें कुशल, शुद्धता, यह वैद्यके चार गुण हैं ॥ ४ ॥ औषधिगुण चतुष्टय | बहुतातत्र योग्यत्वमनेकविधकल्पना । सम्पच्चेतिचतुष्कोऽयं द्रव्याणां गुणउच्यते ॥ ५ ॥ अच्छे गुणयुक्त, रोके अनुसार, अनेक प्रकारसे कल्पनापूर्वक प्रयोग, और कीडे आदिसे रहित नवीन होना, यह चार गुण औषधक कहे हैं ॥ ५ ॥ सेवक के चार गुण ! उपचारज्ञतादाक्ष्यमनुरागश्चभर्त्तरि । शौचञ्चेतिचतुष्कोऽयगुणः परिचरेजने ॥ ६ ॥ प्रेमसे सेवा करना, सब कार्यका जाननेवाला होता, चतुरता, स्वामीका भक्त होना, यह चार गुण परिचारक (सेवक ) के होने चाहिये ॥ ६ ॥ 1 रोगीके चार गुण । स्मृतिनिर्देशकारित्वमभीरुत्वमथापि च । . ज्ञापकत्वञ्चरोगाणामातुरस्यगुणाः स्मृताः ॥ ७ ॥ स्मरण रखना, वैद्यकी आज्ञामें चलना, निर्भय होना ( घबरानेवाला न होना ) अपने रोगोंको यथार्थ कहना यह चार गुण रोग के कहे हैं ॥ ७ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy