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________________ (१००) चरकसंहिता-भा०टी०। दे। शोकातुर न बनारहे। कार्य सिद्ध होनेसे अत्यंत प्रसन्न न होय । कार्यके न हानेसे अति दीनता भी न प्रगट करे। अपने जन्म कर्म आदिका सदेव स्मरण रखे। जिस कार्यका आरंभ कर उसके फल (नतीजे) को पहले सोचलेवे । उन्नतिके हेतु आको नित्य आरंभ करतारहे। अपने आपको कभी कृतकृत्य न समझे । अपने पराक्रमको न छोडे । किसीने अपमान कियाहो तो, उसको याद न करे ॥ ३० ॥ हवनादिके नियम । नाशुचिस्त्तमाज्याक्षततिलकुशसर्षपैरनिंजुहुयात् । आत्मानमाशीभिराशासानः॥ अग्निमनापगच्छेच्छरीरात् । वायुमेप्राणानादधातु । विष्णुवलमादधातु । इन्द्रोमेवीयशिवामां प्रविशंस्त्वापः॥ आपोहिष्टत्यपःस्पृशेत् ॥ द्विःपरिमृजेदोष्ठौ पौचाभ्युक्ष्यमूर्भिखानिचोपस्पृशेत् । अद्भिरात्मानंहृदयांशरश्चब्रह्मचर्यज्ञानदानमैत्रीकारुण्यहर्षापेक्षाप्रशमपरश्चस्यादिति ॥३१॥ शुद्ध पवित्र होकर बी, चावल, तिल, कुशा, सौं इनको अग्निम हवन करे । होम : करनेके पीछे अपनेको इस प्रकार आशीर्वाद दे “आपने हमारे शरीरमंसे मत जाय, वायु हमारे प्राणों की रक्षा करे, विष्णु हमारे शरीरभ वल दें । इंद्र हमारे वीर्यको वढावे । शुभकारक जल हमारे शरीरमें प्रवेश करे । इस प्रकार कहके आपोहिष्टामयोभुवः इत्यादि मंत्रासे अपने शरीरको छीटे दे। दो बार होठोको दोनों पावाको उपरके सव द्वाराको जलसे छोटे देकर मस्तक और आकाशको छोटे दे। जलसे शरीर, हृदय, मस्तक प्रोक्षण करें । ब्रह्मचर्य, ज्ञान, दान, मंत्री, कृपा, तथा आनदको चाहं और शांतचित्तरहै ॥ ३१ ॥ अध्यायका संक्षिप्त वर्णन । अत्र श्लोकाः। पञ्चपञ्चकमुद्दिष्टंमनोहेतुचतुष्टयम्। इन्द्रियोपक्रमेऽध्यायेसद्वृत्तमखिलेनच॥३२॥स्वस्थवृत्तयथोद्दिष्टयःसम्यगनुतिष्ठति । सलमाःशतमव्याधिराथुपानवियुज्यते ॥ ३३ ॥ नृलोकमापूरयतयशसासाधुसम्मतः । धर्मार्थाचतिभूतानांवन्धतामुपगच्छति ॥ ३४ ॥ परान्सुतिनोलोकान्पुण्यकर्माप्रपद्यते ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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