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________________ - सूत्रस्थान-अं०८: · · मन, मनके विषय, बुद्धि, आत्मा, यह अध्यात्मद्रव्योंके गणका संग्रह है। शुभ तथा अशुभ कार्योमें प्रवृत्त और निवृत्त होनेका हेतु भी यही आध्यात्मिक द्रव्यगण है। द्रव्यके आश्रयीभूत जो कर्म है उसको क्रिया कहतेहैं ।। ८ ॥ इन्द्रियोंमें विशषता। .. तत्रानुमानगम्यानांपञ्चमहाभूतविकारसमुदायात्मकानामपिसतामिन्द्रियाणांतेजश्चक्षुषिश्रोत्रेनभः घ्राणेक्षितिरापोरसने स्पर्शनेऽनिलोविशेषेणोपदिश्यते ॥९॥ यह अनुमान द्वारा सिद्ध है कि पांचों इन्द्रियां पांच महाभूतोंके ही विकार हैं। इनमें तेज नेत्रोंमें, आकाश कानोंमें, और नासिकामें पृथ्वी, जीभमें जल, स्पर्शमें वायु, विशेषतासे रहतेहैं ॥९॥ तत्रयद्यदात्मकमिन्द्रियविशेषात्तदात्मकमेवार्थमनुधावति तत्स्वभावाद्विभुत्वाच ॥ १०॥ 1 इनमें जो इंद्रिय जिस महाभूतसे बनीहुई है वह उसीके स्वभाववाली होनेसे और विभु होनेसे उसी महाभूतके गुणको ग्रहण करनेवाली होतीहै ॥ १० ॥ इन्द्रियोंके विपरीत होनेका कारण । तदर्थातियोगायोगामिथ्यायोगात्समनस्कमिन्द्रियविकृतिमापद्यमानंयथास्वबुद्धयुपघातायसम्पद्यते ॥११॥ समयोगात्पुनः प्रकृतिमापद्यमानंयथास्वंबुद्धिमाप्याययति ॥ १२ ॥ इनके विषयोंका अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग होनेसे मन और इन्द्रिय विकृत होजातेहैं और बुद्धि भी नाशको प्राप्त होती है। ऐसे ही ठीक योग होनेसे मन और इंद्रिय ठीक प्रकृतिस्थ रहतेहैं और बुद्धि भी बढतीहै ॥ ११ ॥ १२॥ मनका विषय । मनसस्तुचिन्त्यमर्थः तत्रमनसोबुद्धेश्चतएवसमानातिहीनमिथ्यायोगाःप्रकृतिविकृतिहेतवोभवन्ति ॥ १३ ॥ तत्रेन्द्रियाणा समनस्कानामनुपततानामनुपतापायप्रकृतिभावेप्रयतितव्यमेभितुभिः ॥ १४ ॥ मनका विषय चिंतन करनाहै। यहां पर मन और बुद्धिका ठीक योग होना प्रकृति (तंदुरुस्ती) का कारण है और अतियोग, मिथ्यायोग, अयोग, विकृति व्याधिका कारण है । इसलिये जिस . योगसे. मन और इंद्रिय अपनी शक्तिसे
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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