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________________ (५६) चरकसंहिता-भा० टी. हमथापिच.॥ १६ ॥ पिटालिम्पोच्छिरषिकांतांवतियवसं.. निभाम् । अंगुष्ठसमितांकुदिष्टांगुलसमांभिषक् ॥ १७ ॥ शुष्कांविगातांवत्तिधमनेत्रार्पितांनरः स्नेिहाकामग्निसंप्लुष्टां पिवेत्प्रायोगिकीसुखाम् ॥ १८॥ रेणुक, प्रियंगु, कालाजीरा, नागकेशर, नख, सुगंधवाला, चन्दन, तेजपत्र,तज; इलायची, खस, पद्माख, रोहिषतृण,मुलैठी,जटामांसी, गुग्गुल, अगर, मिश्री, वड़, गूलर, पीपलवृक्ष, प्लस, पठानीलोध, वंशलोचन, वडा नरसल, राल, मोथा, छारछवीला, कमल, उत्पल, सरलका गोंद, छल्लवृक्ष, शुकह (सिरस या ग्रंथिवर्ण) इन सवको पीसकर आठ अंगुल लंबे काने (सरपतेकी सीख) पर एक जौके समान . मोटा लेप करके अंगूठेके समान मोटा करके सुखालेवे सूखने पर उसमेंसे सीख निकालडाले फिर इस वचीको धीमें भिगोकर एकतर्फसे. नालमें लगादे दूसरी तर्फसे आग लगादेवे फिर इसके धूमको पान करे यह धूम नजलेको नष्ट करता- . है ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥१८॥ . वसाघृतमधूच्छिष्टैयुक्तियुक्तैर्वरौषधैः। . वर्तिमधुरकै कृत्वास्नैहिकधूममाचरेत् ॥ १९ । चर्वी, घी, मोम और जीवनीय दश औषधि इनको मिलाकर इनका धूम पारे । इसको स्नेहिक धूमपान कहते हैं ॥ १९ ॥ शिरोविरेचनं घूम। श्वेताज्योतिष्मतीचैवहरितालंमनःशिला । गन्धाश्चागुरुपत्राद्याधूमोमूद्धविरेचनम् ॥२०॥ सफेद कोयल, मालकांगुनी,हरिताल,मनसिल,अगर,पत्रजआदि गंधद्रव्य मिला कर वत्ती बनावे इसका धुआं पीनेसे शिरका विरेचन होता है ॥ २० ॥ . धूम्रपानके गुण गोरवंशिरसःशूलंपीनसावभेदको। कर्णाक्षिशूलंकासश्चहिकावासो गलग्रहः ॥ २१॥ दन्तदौर्वल्यमानावःश्रोत्रघ्राणाक्षिदोपजः। प्रतिघ्राणास्यगन्धश्चदन्तशलमरीचकः ॥ २२ ॥ हनुमन्याग्रहःकंडक्रिमयःपाण्डतामुखे । श्लेप्मप्रसकोवैस्वव्यंगलशण्ड्यपजिविका ॥ २३ ॥ खालित्यंपिञ्जरत्वञ्चकेशा
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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