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________________ भद्रबाहु-परित्र। उल्लंघन किये हुये समुद्रके देखनेसे प्रजाकी समस्त लक्ष्मी राजा लोग ग्रहण करेंगे तथा न्यायमार्गके उल्लंघन करनेवाले होंगे। (१२)बछड़ा से वहन किये हुये रथके देखनेसे बहुधा करके लोग तारुण्य अवस्थामें संयम ग्रहण करेंगे किन्तु शक्तिके घटजानेसे वृद्धा अवस्थामें धारण नहीं कर सकेगें। (१३) ऊंट पर चढ़े हुये राजपुत्रके देखनेसे ज्ञात होताहै कि राजालोग निर्मल धर्म छोड़कर हिंसा मार्ग स्वीकार करेंगे । (१४) धूलिसे आच्छादित रत्नराशिके देखनेसे-निग्रन्थमुनि भी परस्परमें निन्दा करने लगेंगे। (१५) तथा काले हाथियोंका युद्ध देखनेसे मेघ मनोभिलषित नहिं वगे । (१६) राजन् ! इसप्रकार स्वप्नोंका जैसा फल है वैसा मैंने तुमसे कहा। राजा भी स्वप्नोंका फल सुनकर संसारसे भयभीत हुआ और मनमें विचारने लगा ॥ १६-१९ ॥ - अहो ! विपत्ति रूप घातक दुष्टजीवोंसे भोतपोत भरे हुये तथा कालरूपी अमिसे महा भयंकर इस असार जनानां च भविष्यन्ति भूमिपा न्यायलकाः ॥ ॥ पसरवाहेतोदरपाकासुसंयमम् । तारुण्ये चाचरिष्यन्ति वाधिक्ये नापराजितः ॥ ४५ ॥ क्रमेला समारूढराजपुत्रस्य वीक्षणात् । हिंसाविधि विधास्यन्ति धर्म हत्वाऽमक नृपाः ॥ ४६॥ रजसामच्यादितसमनराशरीक्षणतो भृशम् । करिष्यनित नपाः यो नियन्यमुनयो मिषः ॥ १७ ॥ मत्तमातायोयुवीक्षणाकृष्णयोरिह । मनोमिलपिता वृष्टि न विधास्यन्ति वारिदाः ॥ ४ ॥ इति स्वमफलं प्रोक मयका घरणी पते !| निशम्य भवभीतोऽसा चिन्तयामास मानसे || सारासारकान्तारे विपतिस्वापदाफले । कालाननमहाभीमे मीति प्रमाद्भवा ॥ ५० ॥ देहे नेहे
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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