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________________ मुनि नहीं । ॥ ४ ॥ ॥ अष्टपाहुड समूहदि रक्खेदि य, अट्टं झाएदि बहुपयत्तेण । सो पावमोहिदमदी, तिरिक्खजोणी ण सो समणो । । ५ । । ३२९ जो बहुत प्रकार प्रयत्नोंसे परिग्रहको इकट्ठा करता है, उसकी रक्षा करता है तथा आर्तध्यान करता है वह पापसे मोहितबुद्धि पशु है, मुनि नहीं । ॥५॥ कलहं वादं जूवा, णिच्चं बहुमाणगव्विओ लिंगी । वच्चदि णरयं पावो, करमाणो लिंगिरूवेण ॥ ६ ॥ पुरुष मुनिलिंगका धारक होकर भी निरंतर अत्यधिक गर्वसे युक्त होता हुआ कलह करता है, वादविवाद करता है अथवा जुवा खेलता है वह चूँकि मुनिलिंगसे ऐसे कुकृत्य करता है अतः पापी है और नरक जाता है ।। ६ ।। पावोपहदिभावो, सेवदि य अबंभु लिंगिरूवेण । सो पावमोहिदमदी, हिंडदि संसारकांतारे ।।७ ॥ पापसे जिसका यथार्थभाव नष्ट हो गया है ऐसा जो साधु मुनिलिंग धारण कर अब्रह्मका सेवन करता है वह पापसे मोहितबुद्धि होता हुआ संसाररूपी अटवीमें भ्रमण करता रहता है ।।७।। दंसणणाणचरित्ते, उवहाणे जड़ ण लिंगरूवेण । अट्टं झायदि झाणं, अनंतसंसारिओ होदी ।।८।। निलिंग धारण कर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको उपधान अर्थात् श्र नहीं बनाता है तथा आर्तध्यान करता है वह अनंतसंसारी होता है । ८ ।। जो जोडदि विव्वाहं, किसिकम्मवणिज्जजीवघादं च । वच्चदि णरयं पावो, करमाणो लिंगिरूवेण ।।९।। जो मुनिका लिंग रखकर भी दूसरोंके विवाहसंबंध जोड़ता है तथा खेती और व्यापारके द्वारा जीवोंका घात करता है वह चूँकि मुनिलिंगके द्वारा इस कुकृत्यको करता है अतः पापी है और नरक जाता है।।९।। चोराण मिच्छवाण य, जुद्ध विवादं च तिव्वकम्मेहिं । जंतेण दिव्वमाणो, गच्छदि लिंगी णरयवासं । । १० ।। लिंग चोरों तथा झूठ बोलनेवालोंके युद्ध और विवादको कराता है तथा तीव्रकर्म -- खरकर्म अर्थात् हिंसावाले कार्योंसे यंत्र अर्थात् चौपड़ आदिसे क्रीड़ा करता है वह नरकवासको प्राप्त होता है ।।१०।।
SR No.009545
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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