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________________ २६२ कुंदकुंद-भारती जिनमतमें तीन लिंग -- वेष बतलाये हैं, उनमें एक तो जिनेंद्रभगवान्‌का निग्रंथ लिंग है, दूसरा उत्कृष्ट श्रावकों -- ऐलक क्षुल्लकोंका है और तीसरा आर्यिकाओंका है, इसके सिवाय चौथा लिंग नहीं है।। १८ ।। छह दव्व णव पयत्था, पंचत्थी सत्त तच्च णिद्दिट्ठा । सद्दहइ ताण रूवं, सो सद्दिट्ठी मुणेयव्वो । । १९ । छह द्रव्य, नौ पदार्थ, पाँच अस्तिकाय और सात तत्त्व कहे गये हैं। जो उनके स्वरूपका श्रद्धान करता है उसे सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए ।। १९ । । जीवादी सद्दहणं, सम्मत्तं जिणवरेहिं पण्णत्तं । ववहारा णिच्छयदो, अप्पाणं हवइ सम्मत्तं ॥ २० ॥ जिनेंद्र भगवान्ने सात तत्त्वोंके श्रद्धानको व्यवहार सम्यक्त्व कहा है और शुद्ध आत्माके श्रद्धानको निश्चय सम्यक्त्व बतलाया है ।। २० ।। एवं जिणपण्णत्तं, दंसणरयणं धरेह भावेण । सारं गुणरयणत्तय, सोवाणं पढम मोक्खस्स ।। २१ । । इस प्रकार जिनेंद्र भगवान्‌के द्वारा कहा हुआ सम्यग्दर्शन रत्नत्रयमें साररूप है और मोक्षकी पहली सीढ़ी है, इसलिए हे भव्य जीवो! उसे अच्छे अभिप्रायसे धारण करो ।। २१ । । जं सक्कइतं कीरइ, जं च ण सक्कइ तं च सद्दहणं । केवलिजिणेहि भणियं, सद्दहमाणस्स सम्मत्तं ।। २२ ।। जितना चारित्र धारण किया जा सकता है उतना धारण करना चाहिए और जितना धारण नहीं किया जा सकता उसका श्रद्धान करना चाहिए, क्योंकि केवलज्ञानी जिनेंद्र देवने श्रद्धान करनेवालोंके सम्यग्दर्शन बतलाया है ।। २२ ।। दंसणणाणचरित्ते, तवविणये णिच्चकालसुपसत्था । एदे दु वंदणीया, जे गुणवादी गुणधराणं ।। २३ ।। जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप तथा विनयमें निरंतर लीन रहते हैं और गुणोंके धारक आचार्य आदिका गुणगान करते हैं वे वंदना करनेयोग्य -- पूज्य हैं ।। २३ ।। सहजुप्पण्णं रूवं, दट्टु जो मण्णए ण मच्छरिओ । सो संजमपडिवण्णो, मिच्छाइट्ठी हवइ एसो।। २४ ।। मात्सर्यभावमें भरा हुआ जो पुरुष जिनेंद्रभगवान्‌के सहजोत्पन्न -- दिगंबर रूपको देखनेके योग्य
SR No.009545
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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