SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुंदकुंद-भारती अप्पा अप्पम्मि रओ, सम्माइट्ठी हवेइ फुडु जीवो। जाणइ तं सण्णाणं, चरदिह चारित्तमग्गुत्ति । । ३१ ।। आत्मा आत्मामें लीन होता है यह सम्यग्दर्शन है, जीव उस आत्माको जानता है यह सम्यग्ज्ञान है तथा उसी आत्मामें चरण रखता है यह चारित्र है । । ३१ । । अण्णे कुमरणमरणं, अणेयजम्मंतराइं मरिओसि। भावहि सुमरणमरणं, जरमरणविणासणं जीव ।। ३२ ।। २९० हे जीव! तू अन्य अनेक जन्मोंमें कुमरणमरणसे मृत्युको प्राप्त हुआ है अतः अब जरामरणका विनाश करनेवाले सुमरण मरणका चिंतन कर ।। ३२ ।। सो णत्थि दव्वसवणो, परमाणुपमाणमेत्तओ णिलओ । जत्थ ण जाओ ण मओ, तियलोयपमाणिओ सव्वो ।। ३३ ।। तीन लोक प्रमाण इस समस्त लोकाकाशमें ऐसा परमाणु मात्र भी स्थान नहीं है जहाँ कि द्रव्यलिंगी मुनि न उत्पन्न हुआ हो और न मरा हो । । ३३ ।। कालमणतं जीवो, जम्मजरामरणपीडिओ दुक्खं । जिणलिंगेण वि पत्तो, परंपराभावरहिएण ।। ३४ ।। आचार्य परंपरासे उपदिष्ट भावलिंगसे रहित द्रव्यलिंग द्वारा भी इस जीवने अनंतकाल तक जन्म जरा मरणसे पीड़ित हो दुःख ही प्राप्त किया है ।। ३४ ।। पडिदेससमयपुग्गलआउगपरिणामणामकालट्ठे । गहिउज्झियाइं बहुसो, अनंतभवसायरे जीवो । । ३५ ।। अनंत संसारसागरके बीच इस जीवने प्रत्येक देश, प्रत्येक समय, प्रत्येक पुद्गल, प्रत्येक आयु, प्रत्येक रागादि भाव, प्रत्येक नामादि कर्म तथा उत्सर्पिणी आदि कालमें स्थित अनंत शरीरोंको अनेक बार ग्रहण किया और छोड़ा । । ३५ ।। तेयाला तिण्णिसया, रज्जूणं लोयखेत्तपरिमाणं । मुत्तूणट्टपसा, जत्था दुरुदुल्लियो जीवो ।। ३६ ।। ३४३ राजूप्रमाण लोक क्षेत्रमें आठ मध्यप्रदेशोंको छोड़कर ऐसा कोई प्रदेश नहीं जहाँ इस जीवने भ्रमण न किया हो । । ३६ ।। एक्केकेंगुलिवाही, छण्णवदी होंति जाणमणुयाणं । अक्सेसे य सरीरे, रोया भण कित्तिया भणिया ।। ३७ ।।
SR No.009545
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy