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________________ आओ जीना सीन... किताब क्यों लिनवी? 2) इस पर किताबें तो बहुत हैं पर स्टेप बाय स्टेप व्यवस्थित पाठ्यक्रम मुझे नहीं मिला । (ऐसा मार्गदर्शन हो सकता है, किताबें भी हो सकती है, पर मुझे नहीं मिली थीं।) सही मार्गदर्शन नहीं और ऐसे कोई आदर्श सामने नहीं कि जिन्हें देखकर हम सोचें - ऐसा जीना है। सवालों के जवाब मिल रहे थे... मेरी वृत्ति सकारात्मक थी। ग्रंथ मेरे गुरु थे। ढूँढ़ने से सब कुछ मिलता है, यह मेरा विश्वास था। सुख-शांति और आनंद कहां है? रास्ता मैं ढूँढ रही थी। सत्य की खोज और ज्ञान का खजाना इसके आधार पर मैं पुरुषार्थ कर रही थी। मेरी लगन सची थी। मेरे सवालों के जवाब मुझे मिले। आपके मन में भी ऐसे या दूसरे प्रश्न तो आते ही होंगे। मुझे जवाब मिले इसलिए मैं इस किताब द्वारा तुम्हें यह विश्वास दिलाना चाहती हूँ, हर समस्या का समाधान होता है। मेरे भाग्य अच्छे हैं, मुझे हमेशा अच्छे गुरु मिले । कोई भी संत - महात्मा मिलते मैं, उन्हें यह जरूर पूछती । एक महात्मा ने बताया, क्या योगाभ्यास किया है? मैंने कहा नहीं। तब उन्होंने बताया, तुम्हे हर प्रश्न का उत्तर मिलेगा, तुम पूछती हो ना लोग नैतिक क्यों नहीं? पढ़ाई के बाद भी झूठ क्यों बोलते है? और भ्रष्टाचार क्यों करते हैं? सुनो। शील, विनय, आदर्श, श्रेष्ठता, तार बिना झंकार नहीं. शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी, यदि नैतिक आधार नहीं। स्वार्थ साधना की आंधी में, संस्कृति का सन्मान न भूले। आओ जीना सीन... किताब क्यों लिनवी? जीना सीरवने के प्रथम सोपान-योग ___ मैं काफी प्रभावित हुई और तय किया कि मैं योगाभ्यास करूंगी। आजकल योग सीखने का सबको जुनून चढ़ा है। काफी योग संस्थाएं भी हैं, लेकिन योग याने केवल आसन ही सिखाए जाते हैं। सच बात तो यह है - योग केवल आसन नहीं, आसन योग का एक बिन्दु है। हमने प्रवेश, परिचय, प्रवीण, प्रबोध और पंडित इस तरह व्यवस्थित योग सीखा। योगविद्याधाम हमारी संस्था है, जिसने पहली बार मुझे जीना सिखाया। वहां पता चला कि मैं खाना खाती हूँ, वह भी सही नहीं। सात्विक आहार पहली बार चखा, इसका महत्त्व समझा तब पता चला, सचमुच जीना सीखना जरूरी है। योग हमारी विरासत है.. योगाभ्यास के साथ, यहाँ तो कब उठना, कैसे बैठना, कैसे बोलना, सब पर चिंतन होता था और पता चला कि जो हम बचपन से कर रहे थे वह सही नहीं था। एक एक बात जानती थी तब लगता था कि यह सब बचपन में सिखाना चाहिए था। मेरा सारा जीवन ही बदल गया। योग तो हमारा पुरातन ज्ञान है। हमारी विरासत होकर हमें पता नहीं। इतना दुःख होता था । जब एक एक बात का पता चलता था, तब मन ही मन मैं सोचती थी, मैं इसे लोगों तक पहुँचाऊँगी। जीवन सुखी आनंदमय और समृद्ध बनाना सीखें, इसलिए योगाभ्यास करना जरूरी है और जीना सीखना जरूरी है। हमने इतना सुंदर, सहज और व्यवस्थित योग का ज्ञान लिया फिर भी लगता था कोई और अभ्यास होगा, जो हमें नैतिकता, विनय और स्नेह की भावना को सच्चे दिल से जीवन में उतारना सिखाए और योगाभ्यास के साथ काम, क्रोध, मद, मत्सर भाव से दूर होना सीखना जरूरी है। तब पता चला कि हमारे यहां तो ज्ञान का भंडार पड़ा है। दैव देता है और कर्म ले जाता है। हम कितना कुछ खो रहे हैं। आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतो . जावेद लाभकर विचारों को चारों ओर से आने दो। विचारों को ग्रहण करने की यह उदार भावना हमारी संस्कृति में मौजूद है। परिश्रम महान वैज्ञानिक एडीसन अपने कुछ प्रयोगों की सफलता का जश्न मना रहे थे। पार्टी में एक पत्रकारने उनसे पूछा-"क्या आपकी सफलता का कारण आपका भाग्य है?" एडीसनने मुस्कुराकर कहां "भाग्य क्या है, एक औंस बुद्धि, एक टन परिश्रम-"हम जब दुर्भाग्य का रोना रोते हैं तो यह भुला देते हैं, उसमें हमारे परिश्रम के अभाव का हिस्सा कितना है।
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
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