SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अधिष्ठात्रीमा भोसरस्वती आओ जीना सीन... सफलता 0 जॉन रस्किन ने सच कहा है -तुम सत्य को जानोगे तो सत्य तुम्हें स्वतंत्र कर देगा। यही बात बाइबल में भी स्पष्ट की है- जब तुम सत्य को पहचान सकोगे तो सत्य तुम्हे स्वतंत्र बना देगा। सत्य एक बार समझ में आ जाए तो सब कुछ स्पष्ट हो जाता है।ओशो (रजनीश)ने बहुत ही सरलता से सत्य के बारे में बताया है- सत्य स्वयं ही धर्म है, इसलिए सत्य का कोई भी धर्म नहीं है। सत्य का कोई सम्प्रदाय नहीं है, नहीं हो सकता है। सम्प्रदाय तो सब स्वार्थ के हैं। सत्य का कोई संगठन भी नहीं है। क्योंकि सत्य तो स्वयं ही शक्ति है, उसे संगठन की कोई आवश्यकता नहीं हो सकती। विधा की सत्य की दिव्यता __ महाभारत में राजा सत्यदेव की कथा है। एक दिन वे प्रातः काल जागे तो उन्होंने अपने महल से एक सुंदर स्त्री को बाहर जाते हुए देखा। राजा को आश्चर्य हुआ और उस स्त्री से पूछा, "तुम कौन हो?" उसने कहा - "मेरा नाम लक्ष्मी है और अब तुम्हारे घर से जा रही हूं।" राजाने आज्ञा दी। थोड़ी देर के बाद एक सुंदर पुरुष को घर से बाहर जाते देखा। राजा के पूछने के बाद उसने बताया कि वह दान है और लक्ष्मी के यहां से चले जाने के बाद उसकी जरूरत नहीं रह गई, अत: वह भी यहां से जा रहा है। । राजा ने उसे भी जाने दिया। फिर एक दूसरा पुरुष जाने लगा, पूछने से उसने अपना नाम सदाचार बताया। उसका कहना था जब लक्ष्मी और दान ही नहीं रहे तो भला वह कैसे रह सकता है। राजा ने उसे भी जाने की आज्ञा दी। फिर और एक पुरुष आया उसने अपना नाम यश बताया। उसे भी राजा ने जाने दिया। कुछ देर के बाद एक और सुंदर युवक को राजा ने देखा और उससे भी पूछा तो मालूम हुआ कि वह सत्य है। लक्ष्मी, दान, सदाचार और यश चले गए हैं तो भला वह कैसे ठहर सकता है। राजा सत्यदेव ने कहा, "मैने आप को कभी छोड़ना नहीं चाहा, फिर आप मुझे छोड़कर क्यों जा रहे हैं? आप को अपने पास रखने के लिए ही तो मैंने लक्ष्मी, दान, सदाचार और यश का त्याग किया है, आप के चले जाने से मेरा सर्वस्व लुट जायेगा। इसलिए मैं आप को नहीं जाने दूंगा।" राजा की प्रार्थना पर सत्य ने उसकी बात मान ली। जब सत्य नहीं गया तो लक्ष्मी, दान, सदाचार और यश को भी वापस राजा सत्यदेव के पास लौटना पड़ा। आओ जीना सीन... सफलता (39) विद्या और शिक्षा ___ भारतीय संस्कृति में सदा से प्रतीकों का महत्त्व रहा है। इसी क्रम में सरस्वती, लदमी एवं दुर्गा को ज्ञान, सम्पत्ति और शक्ति की अधिष्ठात्री माना गया है। हमारी प्राचीनतम संस्कृति के मोहनजोदड़ो काल से ही मातृदेवी की उपासना चली आ रही है। वस्तुतः हम आराधना मूर्ति की नहीं करके उसके माध्यम से दिव्य सत्ता एवं महत् चैतन्य की करते हैं। हमारे यहां अति प्राचीन काल से ही गणेश को विद्या और सरस्वती को शिक्षा का प्रतीक माना गया है। वस्तुतः विद्या और शिक्षा एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरी अधूरी है। शिक्षा वह है जो विद्यालयों में पढ़ाई जाती है। शिक्षा से ही मस्तिष्क की क्षमता का विकास होता है और मानसिक विकास पर ही व्यक्तित्व का विकास निर्भर है। विकसित व्यक्तित्व ही संपत्तियों एवं महान विभूतियों की उत्पत्ति का कारण बनता है। इसीलिए यह मान्यता चली आ रही है कि सरस्वती आराधना से लौकिक जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि बढ़ती है। अन्यथा हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्म को ही ब्रह्मा कहते हैं और ज्ञान व विवेक के देवता ब्रह्म की पत्नी ही सरस्वती है। माँ सरस्वती को वाणी की देवी के रूप में मान्यता है। भारतीय संस्कृति में बोले गये मंत्र शब्द मात्र ही नहीं होते वरन् उनमें अन्तःकरण को प्रभावित करने की योग्यता समाविष्ट है। मंत्रों की प्रभावोत्पादकता के लिए वाणी को सुसंस्कृत बनाने हेतु माँ सरस्वती की वन्दना की जाती है। H
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy