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________________ सत्यवान आओ जीना जीनवें... आज की समस्या 0 आज की समस्या है नैतिकता की कमी नैतिकता की कमी हर जगह महसूस होती है। पढ़ाई के बाद भी बच्चों में नैतिकता का विकास क्यों नहीं होता? अनुशासन की कमी क्यों है? इसका कारण है पढाई केवल बौन्दिकता संयम सात का पर आधारित है, पुस्तकीय ज्ञान क्या आंतरिक बदलाव मूल है। विलासिता, ला सकता है? निर्बलता और आज यह सिद्ध हुआ है कि शरीर स्थित पीनियल, अनुकरण के थाइराइड, पिट्युटरी आदि ग्रंथियां मनुष्य के चरित्र को प्रभावित करती हैं। 10 से 12 साल तक पीनियल वातावरण में ग्रंथी बहुत सक्रिय रहती है, इससे जीवन में पवित्रता संस्कृति का आती है। ज्यों ज्यों व्यक्ति बड़ा होता है, यह ग्रंथि विकास नहीं होता। निष्क्रिय होने लगती है। -काका प्रायोगिक स्तर पर यदि हम उस ग्रंथि को सक्रिय बनायेंगे तो बच्चों में पवित्रता और अनुशासन स्वतः आ जायेगा । इसलिए उपदेश और पुस्तकीय ज्ञान के साथ प्रयोग की आवश्यकता है। हमारे यहां नैतिकता की बातें बहुत की जाती है, परंतु व्यवहार में नैतिकता दिखाई नहीं देती। 4 बात और आचरण... अमेरिका के एक महानगर में एक जैनी भाई के मकान में रात्रि को मित्रों के बीच चल रही गोष्ठी में धर्म-चर्चा हो रही थी। अचानक घण्टी बजने से कोठारीजी ने दरवाजा खोला तो देखा-उनका अमेरिकी पड़ोसी सामने खड़ा है। कोठारीजी को वह अपने साथ ले गया, जहाँ सड़क पर उनके मित्रों की कारें खड़ी थीं। एक कार की और इशारा करते हुए उसने कहा - 'मोड़ते वक्त मेरी कार से इस कार को जरा टक्कर लग गई थी। यह मेरा बैंक खाता नम्बर है, कार को जो हानि हुई है, आप हर्जाना ले लेंगे।' और 'सॉरी' कहते हुए वह व्यक्ति आगे बढ़ गया। __वापस भीतर लौटकर कोठारीजी जब यह बात बताते है, तो एक मित्र की प्रतिक्रिया होती है - 'हम लोग सदाचार और नैतिक मूल्यों की केवल बात ही करते है, ये लोग तो इन मूल्यों को जीते हैं।' आओ जीना सीन... आज की समस्या 0 पढ़ाई के साथ, प्रयोग की आवश्यकता स्कूल में फिजीयोलोजी, एनोटॉमी और साइकोलोजी जैसे अनेक विषयों को महत्त्व दिया जाता है। पढ़ने के बाद भी जीवन में परिवर्तन नहीं आता, ऐसा क्यों? शिक्षा का आधार AODO रहा है मस्तिष्क । आज यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रंथि तंत्र ही हमारे सारे व्यवहार का निर्देशक है। मस्तिष्कीय ज्ञान की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए पर उसके साथ ग्रंथितंत्र के विकास के प्रयोग भी करने चाहिए। जब तक हारमोन और सिक्रेसन को नहीं बदला जाएगा तब तक सारा विकास अधूरा रहेगा। एकांगी होगा। आंतरिक बदलाव के बिना सारे प्रयत्नों का प्रभाव क्षणिक है। जापान ने इस विषय में जागृति दिखाई, प्रयोग किए। नतीजे सामने आये। एक सर्वेक्षण से यह सिद्ध हो चुका है कि जापान के लोगों की निपुणता का सूचांक 96.3 है जबकि भारत में मात्र 48 है। बच्चों में एकाग्रता, इच्छाशक्ति और संकल्प का विकास हो, ऐसी शिक्षा भी देनी जरूरी है। जैसा कि जापान ने ध्यान के प्रयोग करके सिद्ध कर दिया है। पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ प्रायोगिक अभ्यास आवश्यक है। आओ बच्चो ! जब हमें तथ्य के द्वारा सत्य मालूम हुआ तो हम प्रयोग करेंगे और अपने आपको बदलेंगे। 4 बदल जाते हैं रसायन, ग्रंथियों के स्राव, बदलते व्यवहार सारे, बदलते हैं भाव, बदलता संसार, आनापान के द्वारा।
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
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