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________________ ४० त्यांथी संघ वामनस्थली (वंथळी) थई रैवत ( गिरनार ) गयो. बीजा कोई ग्रन्थकारे प्रभासथी वामनस्थळी संघ गयानी हकीकत मूकी नथी ज्यारे उदयप्रभे तेने व्यवस्थित रीते नोंधी छे. आथी उदयप्रभनुं वर्णन केटलुं चोकसाईवाळु छे ते जोई शकाय छे. संघाधिपति वस्तुपाळे रैवतकारोहण करी पोताना पापकल्मषनो नाश करवा गजेन्द्रपदकुंडमां स्नान कर्तुं अने नेमिनाथ भगवाननी विविधप्रकारी पूजा करी अष्टाह्निका महोत्सव रच्यो. आ प्रमाणे आठ दिवस सुधी संघेश वस्तुपाळे गिरनार उपर रही प्रसन्न मन वडे पुष्कळ दानधर्मो कर्या अने अंबा, प्रद्युम्न, सांब वगेरे ट्रंकोनी यात्रा करी त्यांना तीर्थदेवताओनो पूजन, अर्चन करी सत्कार कर्यो. पछी पोते संघ सह नीचे उतर्या. प्रभासथी गिरनार तरफ आवतां रैवतकनी तलेटीमां तेजपाले वसावेल तेजपालपुरनुं कुमारसरोवर, जे तेमणे बंधाव्यं हतुं, त्यां वस्तुपाळे आदीश्वर भगवाननुं पूजन कर्तुं एम वसंतविलास काव्यना कर्ता जणावे छे.१ उदयप्रभसूरिए महाधार्मिक वस्तुपाळनी तीर्थयात्रा अने तेना दानप्रवाहनी श्लाघा करतां तेनुं रसिक वर्णन अहीं सर्वोत्कृष्ट भाषामां गुंथ्युं छे. तेमां यात्रानी एक पवित्र नदी साथे तुलना करतां, जेम नदी पोताना प्रवाह मार्गमां आवतां प्राणीमात्रनुं कल्याण साधे छे तेम आ महापुरुषे पोताना दानप्रवाहने अखंड रीते चालू राखी जनसमाजनुं परम कल्याण साध्यं हतुं, एवो आशय व्यक्त कर्यो छे. २ यात्रिकवर्गने अनेक प्रकारे सुखसाधनो आपता अने आनंद प्रमोद आपता वस्तुपाळ संघ सह धोळका गया. त्यां तेमनुं सन्मान करवा तेजपाल अने पौरजनोनी साथे वीरधवलदेवे सामा जई जिनप्रभुने नमस्कार कर्या. वस्तुपाळे त्यां जिनप्रभुने रथमांथी नीचे पधरावी भक्ति वडे पूजन कर्तुं अने संघने भोजन, वस्त्रादिक वडे संतोष आप्यो. वीरधवले वस्तुपाळने कुशळ वर्तमान पूछी विवेक दर्शाव्यो. उदयप्रभसूरिए आ यात्रानुं वर्णन थोडाक शब्दोमां संपूर्णतः आप्युं छे. तेमनी लेखनशैली विद्वान मनुष्योने पण मोह पमाडे छे, कारण तेमां कर्मकटुता के शब्दाडंबरनी छाया कोई पण ठेकाणे जोवामां आवती नथी. जे हकीकत रजू कराई छे तेमां पूरती चोकसाई अने प्रामाणिकता उपर खास लक्ष्य आप्युं छे. तेथी ज बीजां बधां यात्रावर्णनो करतां उदयप्रभनुं यात्राविवेचन वधुं प्रामाणिक अने सन्मान्य छे. आ ग्रंथनुं धार्मिक महत्त्व अनेकगणुं हशे परंतु ऐतिहासिक दृष्टिए पण तेनुं महत्त्व ओछु नथी एम कहेवुं पडे छे. ९. वस्तुपालना संघनी सामग्रीगणना आ तीर्थयात्राओमां केटलां मनुष्यो, रथो, गाडांओ, रक्षको, सुखासनो अने इतर १. वसंतविलासकाव्य, सर्ग ११, श्लोक ७३थी ७६ २. पुरः पुरः पूरयता पयांसि धनेन सान्निध्यकृता कृतीन्दुः । स्वकीर्तिवन्नव्यनदी ददर्श ग्रीष्मेऽतिभीष्मेऽपि पदे पदेऽसौ ॥ २१ ॥ - धर्माभ्युदय काव्य, सर्ग १५.
SR No.009540
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages515
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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