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________________ प्रस्तावना तमःस्तोम स हन्तु, श्री सिद्धसेन दिवाकरः यस्योदये स्थितं, मूकैरुलकैरिव वादिभिः ॥ १॥ प्रद्युम्नसरि राजकुमार शुद्धोदन बौद्ध गौतमे ननामी उपाडी जता माणसोने अने तेनी पाछळ रोककळ करता तेना कुटुंबीओने जोई पोताना सेवकने पुछयुं आ शुं छे ? सेवके का 'कुमार! जुवानजोध साजो सारो एक श्रेष्ठिपुत्र अचानक मरण पाम्यो छे तेना मृतकने तेना सगाओ श्मशाने लइ जाय छे.' गौतम विचारे चडयो 'मानवमात्रनी आ दशा ? सौर्नु मृत्यु अचूक. मरण पछी शुं थतुं हशे? बाळ किशोर युवान वृद्धावस्था मरण आ वधु कोर्नु ? दुनीयानां अनेक परावर्तनोर्नु कारण शुं ?' शुद्धोदन खुमखुब विचारमा उंडो उतयों पण तेनो ताग तेने न लाध्यो. तेणे फरी विचार्यु 'आ वेभव, पुत्र, स्त्री अने संपत्तिना मोहमय वातावरणमा भने आनो उकेल क्याथी जडे आने माटे तो नीरव शांतिवाढं स्थान जोइए. तेणे एक मधराते सुतेला पुत्र स्त्री अने वैभवभर्यो राजमहेल छोडयो अने ते पगपाळो चाली नगर बहार आव्यो. दूरदूरना केइ आश्रमोमा कोइ 'ॐ नमः शिवाय' तो कोइ 'हरे राम हरे कृष्ण हरे राम हरे हरे' करता तापसोनो अवाज तेने काने पडयो. गौतम आश्रमे आश्रमे फर्यो अनेक तापसो अने वर्षों सुधी तपत्याग अने ध्यान करनाराओनो संसर्ग सेव्यो पण तेने जन्म शुं? मरण शुं? मरण पछी शुं स्थिति ? विगेरेनो उकेल न लाध्यो. गौतम एकलो पडयो. वर्षों सुधी आनो तेणे विचार कर्यो अने शोधी कायु के 'दुनीयानी देखाती बधी वस्तु क्षणविनश्वर छे ते क्षणे क्षणे नाश पामे छे दीवानी कलगी, भिन्न छतां आपणने सदृशताने लइने एक लागे छे, तेम सदृशताने लइने दुनीयाना पदार्थोमां आपणने एकता लागे छे. बाकी बधुं क्षणविनश्वर छ गौतमनो वाद-विचार क्षणक्षयमा स्थिर थयो. तेणे क्षणक्षयने केन्द्रमा राखी वधी वातोनो उकेल आण्यो. राजकुमार गौतमना क्षणक्षयना विचारमाथी चौद्धदर्शन प्रगटयु. कारुणिक कपिले आ दुनियानी घटमाळनो उकेल पुरुष अने प्रकृति ए ये तस्वनी शोष शारा आण्यो अने ते बे तत्व उपर निर्भर रहेल तेनो तत्ववाद सांख्यदर्शनरूपे प्रगटयो. मीमांसक दर्शनकारने मानवमात्र मतिविभ्रम, प्रमादादिथी अपूर्ण शक्तिवाळो भास्यो अने तेथी तेणे वेदोने अपौरुषेय मान्या अने ते वेदो द्वारा अनेक वस्तुओना उकेल शोधी पोताना तत्ववादने तेणे स्थिर कर्यो. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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