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________________ विश्वलोचनकोश:-- अथ जान्तवर्गः । जैकम् । जः स्याज्जविनि जोद्भूतौ जयने जिः प्रकीर्तितः । जूराकाशे सरखत्यां पिशाच्यां जविने त्रिषु ॥ १ ॥ ६६ जद्वितीयम् । अजः कृष्णे स्मरहरे विधौ छागे रघोः सुते । अब्जो धन्वन्तरौ चन्द्रे निचले क्लीबमम्बुजे ॥ २ ॥ अस्त्री कम्बुन्यथाssजिः स्यात्सङ्ग्रामेऽपि समक्षितौ । उत्साह कार्त्तिके प्यूर्जस्तूर्जा वीर्ये बले द्वयोः ॥ ३ ॥ कञ्जः केशे विरिञ्चेऽपि कञ्जं पीयूषपद्मयोः । कुजस्तु नरकेऽङ्गारे मे कुञ्जं तु न स्त्रियाम् ॥ ४ ॥ अथ जान्तवर्गः । जैक । ज - वेगवाला, (पुं० ) जा-उत्पत्ति, ( स्त्री ० ) जि-जीतना ( स्त्री० ) जू-आकाश, सरखती, पिशाची, वाला, ( त्रि० ) ॥ १ ॥ वेग जद्वितीय । अज-कृष्ण, महादेव, ब्रह्मा, बकरा, रघुराजाका पुत्र, ( पुं० ) अब्ज-धन्वंतरि, चन्द्रमा, वेतस-वृक्ष, ( पुं० ) कमल, ( न० ) शंख, ( पुं० न० ) ॥ २ ॥ [ जान्तवर्गे आजि - संग्राम, सम ( बराबर ) पृथ्वी, ( स्त्री० ) ऊर्ज (र्जा) - उत्साह ( हर्ष ), कार्त्तिकमास, (पुं० ) वीर्य, बल, ( पुं० स्त्री० ) ॥ ३ ॥ कंज-केश, ब्रह्मा, ( पुं० ) कञ्ज- अमृत, कमल, ( न० ) कुज - भौमासुर, मंगल-ग्रह, वृक्षमात्र, ( पुं० ) ॥ ४ ॥ कुंज - ठोडी, वत्स ( छाती ), कुंज ( लता आदिका घर ) ( पुं० न० ) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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