SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्वलोचनकोश: घद्वितीयम् । पापेऽर्त्ती व्यसने चाऽघं स्यादर्धोऽचैनमूल्ययोः ॥ १ ॥ अङ्घिः स्याज्जानुचरणे मूले चापि महीरुहाम् । उद्घो हस्तपुटे देहपवने पावके पुमान् ॥ २॥ ५८ ओषः परम्परायां स्याद्दुत नृत्योपदेशयोः । ओघः पाथः प्रवाहे च समूहे च पुमानयम् ॥ ३ ॥ मघा दशमनक्षत्रे मघा स्याद्भुतजान्तरे । वारिवाहेऽपि मेघः स्यान्मेघः स्यान्मुस्तकेऽपिच ॥ ४ ॥ मोघस्तु निष्फले दीने मोघा पाटलिपादपे । लघुर्मनोज्ञनिस्सारागुरुलघुषु वाच्यवत् ॥ ५ ॥ पृक्कायां स्त्री लघु क्लीबं कृष्णागुरुणि सत्वरे । श्लाघा तु स्यात्प्रशंसायां परिचर्याऽभिलाषयोः ॥ ६ ॥ [ घान्तवर्गे घद्वितीय । अघ- पाप, पीडा, व्यसन, ( न० ) अर्घ- पूजाविधि, मूल्य ( मोल ) ( पुं० ) ॥ १ ॥ उत्पन्न हुए ग्राम आदि ( स्त्री० ) मेघ-बद्दल, नागरमोथा औषधि, ( पुं० ) ॥ ४ ॥ मोघ - निष्फल, दीन, (पुं० ) अंघ्रि - घोंटू ( गोडा ), चरण (पाँव), मोघा - मोखानाम-वृक्ष, (स्त्री०) वृक्षोंकी जड़ ( पुं० ) उद्ध- हाथका पुट, शरीरका पवन, अमि, ( पुं० ) ॥२॥ ओघ - परंपरा, शीघ्र नृत्य, शीघ्र उपदेश, जलका प्रवाह, समूह, (पुं० ) ॥ ३॥ मघा - दशवां नक्षत्र ( मघा ), शब्दसे | लघु-सुंदर, निस्सार, अगुरू (छोटा), हलका ॥ ५ ॥ ( त्रि० ) असवरग - औषधि (स्त्री० ) लघु-काला अगर, शीघ्रता ( न० ) श्लाघा - प्रशंसा ( बडाई ), शुश्रूषा, अभिलाषा ( इच्छा ), ( स्त्री० ) ॥ ६ ॥ " Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy