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________________ विश्वलोचनकोश: [कान्तवर्गे तत्र संन्यासमात्रेण क्षुधा च कृतभोजने । सोमवल्कः पुमान् श्वेतखदिरे कट्फलेऽपि च ॥ २३१ ॥ सौगन्धिकं तु कलारे पद्मरागे च कत्तृणे । गन्धके गान्धिके पुंसि त्रिषु सौगन्धिकं. क्रमात् ॥ २३२ ।। कपञ्चमम् । अनेडमूकः कितवे त्रिषु वाक्श्रुतिवर्जिते । स्यादाच्छुरितकं हासनखाघातविशेषयोः ॥ २३३ ॥ मातोपकारिका राजमन्दिरे पिष्ट कान्तरे । उपकामपीयं स्यादथ स्यात्कटखादकः ॥ २३४ ॥ खादके काचकलशे बलिपुष्टशृगालयोः । स्यात्कक्षावेक्षको धीरे शुद्धान्तोद्यानपालयोः ।। २३५ ॥ अपि षिड्ने कवौ रङ्गाजीविनि द्वारपालके । स्यात्कृमीकण्टकं चित्राविडङ्गोदुम्बरेप्वपि ॥ २३६ ॥ सोमवल्क-सफेद खरै, कायफल | उपकारिका-माता, राजमन्दिर, (पुं०)॥ २३१ ॥ पिष्टका भेद, उपकारकरनेवाली स्त्री, सौगन्धिक-संध्यासमय खिलनेवाला (स्त्री०) कमल, माणिक-रत्न, सौगन्धिक कटखादक-खानेवाला काचकलश, तृण या गंजाण, (न०) गन्धक,! यक काग, गीदड, (पुं० ) ॥ २३४ ॥ गांधी, (पुं० ) गंधवाला द्रव्य । (त्रि०) ॥ २३२ ॥ कक्षावेक्षक-धीर, रनवास और ब_ कपंचम। गीचाकी रक्षा करनेवाला, ॥२३५॥ अनेडमक-छलकरनेवाला, वाणी और धूर्त, कवि, कपडा रंगनेवाला. कर्णेन्द्रियसे रहित, ( त्रि०) | (रंगरेज), द्वारपाल (पुं०) आच्छुरितक-हँसना, नखोंसे आघात | कृमि(मी)कंटक-चीता, वायविडंग, विशेष, ( न० ) ॥ २३३ ॥ गूलर, (न०) ॥ २३६ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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