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________________ विश्वलोचनकोश: बीजपूरेऽपि दीनारे रोचनादेववृक्षयोः । रुण्डिका रणभूर्द्वार पिण्डिकादूतिकार्थिका ॥ १४७ ॥ जमदग्निप्रियायां च हरेण्वामपि रेणुका | लम्पाकः पुंसि देशे स्याल्लम्पको लम्पटे त्रिषु ॥ १४८ ॥ लासको उसके लास्यकारकेऽपि मयूर के | लूनकः स्यात्पशौ भिन्ने लोचको नेत्रतारके ॥ १४९ ॥ मांसपिण्डे च पिण्डे च योषिद्धालविभूषणे । कज्जले नीलचोले च मौय थचर्मणि ॥ १५० ॥ कदल्यां कर्णपूरे च निर्बुद्धिनृषु लोचकः । वस्तु खले धूर्ते गृहबभौ च फेरवे ॥ १५१ ॥ बन्धकः स्याद्विनिमये वसासत्योस्तु बन्धकी । बन्धूकं बन्धुजीवे स्याद्वन्धूकः पीतशालके ॥ १५२ ॥ २६ सुवर्णसिक्का, कुंकुम - केसरआदि, देवदार वृक्ष ( न० ) रुंडिका - रणभूमि, द्वार पिंडी ( देहली ), दूती, मागनेवाली, (स्त्री० ) ॥ १४७॥ रेणुका - जमदग्नि ऋषिकी स्त्री, मटर धान्य, ( स्त्री० ) लम्पाक- देशविशेष ( पुं० ) लम्पट, ।। १५१ ।। ( त्रि० ) ॥ १४८ ॥ लासक-शोभावान, नृत्यकरनेवाला, | बन्धक - दोवस्तुवोका मोर, (पुं० ) लूनक- विदारणकिया पशु, (पुं० ) लोचक नेत्रका तारा ॥ १४९ ॥ मांसपिंड, पिंड, स्त्रीकेभालका आभूषण, कज्जल, नीला वस्त्र, ध [ कान्तवर्गे नुषकी प्रत्यंचा, भृकुटीकीं ढीली च मडी ॥ १५० ॥ केला, कर्णका आभूषण, निर्बुद्धि मनुष्य (पुं० ) वञ्चक-खल ( खोटामनुष्य ), धूर्त मनुष्य, गृहमें पालाहुवा नौला ( प्राणी ), गीदड, ( पुं० ) बदलाकरना, (गिरवी) (पुं० ) बन्धकी - वसा, व्यभिचारिणी स्त्री, ( स्त्री० ) "Aho Shrutgyanam" बन्धूक - दुपहरिया पुष्प, ( न० ) पीला सालका वृक्ष (पुं) || १५२ ॥
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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