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________________ विश्वलोचनकोश: पादालिन्दे पदारः स्यात्पदारः पादधूलिषु । पवित्रमुपवीतांबुताम्रे दर्भेऽपि धर्मणि ॥ १७५ ॥ मेध्ये त्रिप्वथ पाटीरः केदारे तितउन्यपि । मूलके वार्तिके व वेणुसारेऽपि बारिदे ॥ १७६ ॥ ३०६ पाण्डुरं स्यान्मरुचके वर्णे ना तद्वति त्रिषु | पामरो वाच्यवन्नीचे मूर्खे स्वस्थेऽपि पामरः ॥ १७७ ॥ राजयक्ष्मणि कीनाशे भक्तशिक्थेपि पार्परः । पापरो भस्ममात्रेऽपि जठरे नीपकेसरे ॥ १७८ ॥ पिञ्जरं कनके पीते त्रिषु पुंसि हयान्तरे । पिठरस्तु मतः स्थाल्यां पिठरं मन्थमुस्तयोः ॥ १७९ ॥ पिण्डारो महिषीपाले क्षेपक्षपणशाखिषु । पीवरः कच्छपे पुंसि पीनेषु त्रिषु पीवरः ॥ १८० ॥ पदार- पादालिन्द, पावोंकी धूलि ( पुं० ) पवित्र - यज्ञोपवीत, जल, ताँबा, कुशा, धर्म ( न० ) पवित्र (त्रि०) ॥१७५॥ पाटीर-खेत, चलनी, मूली, वार्त्तिक ( वृत्तिकरनेवाला ), राँगा, सरलका गोंद, मेघ, (पुं० ) ॥ १७६ ॥ पांडुर - मरुवा ( न० ) श्वेतरंग (पुं०) श्वेतरंगवालां (त्रि ० ) [ रान्तवर्गे पामर - नीच, मूर्ख, स्वस्थ ( प्रकृति में स्थित ) ( त्रि० ) ॥ १७७ ॥ पार्पर-राजयक्ष्मा रोग, धर्मराज या मृत्यु, जटार ( जटावाला ), कदंबकेसर, (पुं० ॥ १७८ ॥ पिंजर - सुवर्ण ( न० ) पोलारंगवाला (त्रि ० ) अश्वभेद ( पुं० ) पिठर- - चावल आदि पकानेका वर्तन, ( पुं० ) दधिआदिमथनेका दंड, नागरमोथा, ( न० ) ॥ १७९ ॥ पिंडार भैंसों का पालनेवाला, क्षेप ( फेंकनेका द्रव्य ), भिक्षुक, वृक्ष, ( पुं० ) पीवर- कछुवा, (घुं० ) मोटा ( स्थूल) ( त्रि० ) ॥ १८० ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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