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________________ २५२ विश्वलोचनकोश: [ मान्तवर्गेउपक्रमश्चिकित्सायामुपधाने च विक्रमे । भवेदुपगमः पार्श्वगमनेऽङ्गीकृतावपि ॥ ६४ ॥ जलगुल्मो जलावर्तजलचत्वरकच्छपे । दण्डयामस्तु दिवसे कीनाशे कुम्भसम्भवे ।। ६५ ।। पराक्रमस्तु सामर्थ्य विक्रमोद्योगयोरपि । प्लवङ्गमः कपो भेके महापद्मं तु मानके ॥ ६६ ।। महापद्मः पुमान्सङ्ख्यानिधिनागान्तरे मतः । यातयामो मतो जीर्णे परिभुक्तोज्झिते त्रिषु ।। ६७ ।। सार्वभौमस्तु दिग्नागभेदे सर्वमहीपतौ । अभ्युपगमः स्वीकारे समीपागमनेऽपि च ॥ ६८ ॥ इति विश्वलोचने मान्तवर्गः ॥ उपक्रम-चिकित्सा ( इलाज ), उ-महापद्म-संख्याभेद, निधिभेद, नापधा, विक्रम, (पुं०) गभेद, (पुं० ) उपगम-समीपजाना, अंगीकार, यातयाम-जीर्ण, अच्छीतरह भोगा. (पुं० ) ॥ ६४ ॥ । हुवा, त्यागाहुवा, ( त्रि०)॥६७॥ जलगुल्म-जलका भँवर, जलचौक, सार्वभौम-दिगृहस्तीभेद, संपूर्णपृ. कछुवा ( पुं० )। थ्वीका राजा, (पुं०) दण्डयाम-दिन, धर्मराज, अगस्त्य अभ्युपगम-अंगीकार, समीपमें मुनि, (पुं० ) ॥ ६५ ॥ आना, (पुं०)॥ ६८ ॥ पराक्रम-सामर्थ्य, विक्रम, उद्योग, (पुं० )। इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषामें प्लवंगम-बन्दर, मेंडक, (पुं० ) । मान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ महापद्म-प्रमाण, (न०)॥६६ ॥' "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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